- महाकाल नवरात्रि के अंतिम दिन महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा
देहरादून 6 मार्च, महाकाल नवरात्रि के अंतिम दिन महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज के अनुसार महामृत्युंजय अनुष्ठान शिव नवरात्रि में विशिष्ट फलदायक होता है। संवत्सर के 12वें मास फाल्गुन में जब सूर्यदेव अपनी 12 रश्मियों से इस जगत को प्रकाशित करते हैं और 12वीं राशि की ओर जाने की तैयारी करते हैं तब फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन सूर्य की 12 ज्योतियों से संयुक्त 12 ज्योतिर्लिंग के प्राकट्य अवसर एवं भगवान-शिव पार्वती के विवाह के दिन को महाशिवरात्रि महापर्व कहा जाता है। शैव मतानुसार महाशिवरात्रि के 9 दिन पूर्व अर्थात फाल्गुन कृष्ण पक्ष पंचमी से फाल्गुन कृष्ण पक्ष चतुर्दशी महाशिवरात्रि तक शिव नवरात्रि या महाकाल नवरात्रि का 9 दिन का उत्सव बताया गया है। जिस प्रकार शक्ति की आराधना हेतु देवी नवरात्रि रहती है उसी प्रकार शिव की साधना के लिए शिव नवरात्रि का विधान बताया गया है। महाकाल नवरात्रि देश के प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंगों के अलावा कई शिव मंदिरों में विशेष रूप से मनाई जाती है। उज्जैन शक्तिपीठ और शक्तितीर्थ है। यहां महाकाल के साथ देवी हरसिद्धि विराजित हैं। शिव-पार्वती संबंध के कारण शक्ति की तरह शिव की भी नवरात्रि उत्सव की परंपरा है। यहां नौ रात्रि तक विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। महाकालेश्वर मंदिर में महाकाल नवरात्रि के दौरान लघुरुद्र, महारुद्र्र, अतिरुद्र, रुद्राभिषेक, शिवार्चन, हरिकीर्तन के आयोजन किए जाते हैं। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज के अनुसार कृष्ण पक्ष में चन्द्रमा की कलाएं क्षीण हो जाती हैं। मन का कारक चंद्रमा कमजोर होने से मानसिक पीड़ा रहती है। इसलिए शिव की आराधना फलदायक है। इस दौरान की गई आराधना सर्वोत्तम फलदायक होती है। शिव का पूजन रात्रि में किया जाता है। कृष्ण पक्ष अर्थात अंधकार का समय उसमें भी चतुर्दशी तिथि जिसे कालरात्रि की संज्ञा दी गई है। संहार शक्ति एवं तमोगुण के अधिष्ठाता भगवान शिव चतुर्दशी तिथि के स्वामी हैं। इस कालरात्रि में यदि शिवार्चन को विशिष्ट फलदायक माना गया है।
हिंदू धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाते हैं। दक्षिण भारतीय पंचांग के अनुसार, माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पड़ती है। दोनों पंचांगों के अनुसार, यह दोनों तिथि एक ही दिन पड़ती हैं। इस साल महाशिवरात्रि 11 मार्च 2021 को है। महाशिवरात्रि के दिन विधि-विधान से व्रत रखने वालों को धन, सौभाग्य, समृद्धि, संतान और अरोग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन कुछ व्रत नियमों का पालन किया जाता है।
जानिए महाशिवरात्रि व्रत नियम-
1. महाशिवरात्रि के दिन व्रती को सबसे पहले सूर्योदय से पूर्व उठकर पानी में जल में काले तिल डालकर स्नान करना चाहिए। इसके बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए। इस दिन काले वस्त्र धारण नहीं करने चाहिए।
2. महाशिवरात्रि निर्जला या फलाहार दोनों तरह से रखा जा सकता है। निर्जला व्रत रखने वाले व्रती को भगवान शिव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
3. महाशिवरात्रि के दिन शिव पूजन करने से पहले नंदी की पूजा अवश्य करनी चाहिए। इसके बाद भगवान शिव को पंचामृत से स्नान कराएं। जिसमें दूध, दही, शक्कर और शहद होना चाहिए।
4. पंचामृत से स्नान कराने के बाद भगवान शिव को गंगाजल से स्नान कराना चाहिए।
5. भगवान शिव को पूजा के दौरान बेलपत्र, फूल, भांग और धतूरा आदि अर्पित करना शुभ होता है। यह सब अर्पित करने के बाद भगवान शिव को बेर और फल अवश्य चढ़ाने चाहिए।
महाशिवरात्रि 2021 शुभ मुहूर्त-
निशीथ काल पूजा मुहूर्त :24:06:41 से 24:55:14 तक।
अवधि :0 घंटे 48 मिनट।
महाशिवरात्रि पारणा मुहूर्त :06:36:06 से 15:04:32 तक।
- 11 मार्च को मनाया जायेगा महाशिवरात्रि पर्व : डॉक्टर आचार्य सुशांत राज
महाशिवरात्रि का पर्व 11 मार्च 2021 को है। इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा की जाती है। उनका आशीर्वाद पाने के लिए महाशिवरात्रि का व्रत किया जाता है। हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रति वर्ष फाल्गुन माह कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को महाशिवरात्रि (शिव तेरस) मनाई जाती है। धार्मिक मान्यता है कि इस शुभ दिन पर मां पार्वती के संग देवों के देव महादेव शिव का विवाह हुआ था।
माना जाता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने पर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। दांपत्य जीवन में खुशियां लाने के लिए, मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त करने के लिए भक्त इस दिन व्रत करते हैं। ईशान संहिता के अनुसार ‘फाल्गुनकृष्णचर्तुदश्याम् आदि देवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भुत: कोटिसूर्यसमप्रभ:। तत्कालव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रिव्रते तिथि:।’ अर्थात् फाल्गुन चतुर्दशी की मध्यरात्रि में आदिदेव भगवान शिव लिंगरूप में अमिट प्रभा के साथ उद्भूत हुए। इस रात को कालरात्रि और सिद्धि की रात भी कहते हैं। जो भक्त महाशिवरात्रि का व्रत रखते हैं, भगवान शिव सदैव उनपर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखते हैं। महादेव के आशीर्वाद से घरों में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
महाशिवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह भगवान शिव का प्रमुख पर्व है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में महाशिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।
समुद्र मंथन अमर अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित था, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित हो उठे थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव ‘नीलकंठ’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए, चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी। शिव का आनंद लेने और जागने के लिए, देवताओं ने अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया।शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया। तब से इस दिन, भक्त उपवास करते है।
महाशिवरात्रि के दिन शुभ काल के दौरान ही महादेव और पार्वती की पूजा की जानी चाहिए तभी इसका फल मिलता है। महाशिवरात्रि पर रात्रि में चार बार शिव पूजन की परंपरा है।
महाशिवरात्रि का शुभ मुहू्र्त
महाशिवरात्रि तिथि – 11 मार्च 2021, बृहस्पतिवार
निशिता काल का समय – 11 मार्च, रात 12 बजकर 6 मिनट से 12 बजकर 55 मिनट तक
पहला प्रहर – 11 मार्च, शाम 06 बजकर 27 मिनट से 09 बजकर 29 मिनट तक
दूसरा प्रहर – 11 मार्च, रात 9 बजकर 29 मिनट से 12 बजकर 31 मिनट तक
तीसरा प्रहर – 11 मार्च, रात 12 बजकर 31 मिनट से 03 बजकर 32 मिनट तक
चौथा प्रहर – 12 मार्च, सुबह 03 बजकर 32 मिनट से सुबह 06 बजकर 34 मिनट तक
शिवरात्रि पारण का समय – 12 मार्च, सुबह 06 बजकर 34 मिनट से शाम 3 बजकर 02 मिनट तक
पूजा विधि
सुबह जल्दी उठें और नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएं।
इसके बाद जिस जगह पूजा करते हैं, वहां साफ कर लें।
फिर महादेव को पंचामृत से स्नान करें।
उन्हें तीन बेलपत्र, भांग धतूरा, जायफल, फल, मिठाई, मीठा पान, इत्र अर्पित करें।
शिवजी को चंदन का तिलक लगाएं, फिर खीर का भोग लगाएं।
दिन भर भगवान शिव का ध्यान करें, उनकी स्तुति करें।
रात के समय प्रसाद रूपी खीर का सेवन कर पारण करें और दूसरों को भी प्रसाद बांटें