देहरादून, यूं ही अनायस कभी कोई गाथा गौरवशाली नहीं इमारतों के कंगूरे पर पड़ती सुनहरी किरणों के पीछे दृढ़ एवं आत्मविश्वास से भरी ईंटों का बलिदान और त्याग छुपा रहता है। हम जिक्र कर रहे हैं आज से लगभग 7 वर्ष पूर्व केदारनाथ त्रासदी के बाद गठित एसडीआरएफ उत्तराखंड पुलिस के अचानक से पर्वतीय राज्य से निकल कर विश्व पटल पर छा जाने की कहानी का। एसडीआरएफ में सर्वप्रथम जिस शख्स की नियुक्ति हुई, उसने अपने करिश्माई नेतृत्व से 152 सदस्यों से निर्मित बल को राज्य ही नही पूरे देश मे एक अनिवार्य बल के रूप में स्थापित किया। जी हां, हम बात कर रहे हैं उत्तराखंड पुलिस के तेज तर्रार ऑफिसर एवमं पर्वतारोही आईपीएस संजय गुंज्याल की। गुंज्याल वही शख्स हैं जिन्होंने वर्ष 2013 में केदारनाथ त्रासदी के उपरांत पैदल और ऊबड़-खाबड़ रास्तों से होकर सर्वप्रथम रामबाड़ा पहुंचकर रेस्कयू अभियान शुरु किया और केदार त्रासदी की वास्तविक जानकारी मुहैया कराई।
वर्ष 2014 में एसडीआरएफ के गठन के बाद संजय गुंज्याल को एसडीआरएफ के उपमहानिरीक्षक की जम्मेदारी दी गई। यही वो समय था जब राज्य आपदा प्रतिवादन बल के स्वर्णिम भविष्य की सृदृढ़ नींव एक समर्थ एवमं सबल हाथों में आ गई थी। जिसने एसडीआरएफ उत्तराखंड पुलिस को एक पारंगत एवमं विशेषज्ञ पुलिस के सांचे में ढाल दिया, वही एसडीआरएफ जिसने आंध्रप्रदेश, बिहार जैसे प्रदेशों में भी रेस्कयू कार्यों में अपनी सार्थकता सिद्ध की।
वर्ष 2014 उत्तराखंड में प्रथम बार हिमालय का कुम्भ मां नन्दा देवी राजजात मेला शुरू हो रहा था। बीहड़ एवमं विषम पगडंडियों से गुजरती महाद्वीप की इस सबसे बड़े धार्मिक मेले का अनुभव उत्तराखंड पुलिस के पास नहीं था लेकिन इसे अगुवाई का हुनर ही कहेंगे कि सम्पूर्ण यात्रा के दौरान किसी भी अनहोनी की संख्या शून्य में रही। जबकि, सैकड़ों रेस्कयू कार्य को बखूबी निभाया गया। राजजात के सफल आयोजन की गूंज अंतराष्ट्रीय मीडिया में भी सुनाई दी।
उत्तराखंड के भौगोलिक स्वरूप को देखते हुए रेस्कयू कार्यो में सफलता की दर बढाने के लिए एसडीआरएफ जवानों को ग्लेशियर एवमं ट्रैक रुटों पर रेस्कयू के लिए पर्वतारोहण की ट्रेनिग दिलाई गई। साथ ही पर्वतारोहण अभियान भी शुरू किये गए। एसडीआरएफ उत्तराखंड पुलिस ने महानिरीक्षक संजय गुंज्याल के नेतृत्व में भागीरथी-2, सतोपंथ और विश्व शिखर एवरेस्ट तक पुलिस ध्वज फहराकर अपने हौसलों और अंदाज से सबको रूबरू कर दिया।
अल्प समय में एसडीआरएफ का अनेक क्षेत्रों में अपना सर्वश्रेष्ठ देना, समाज मे सम्मान प्राप्त कर मानव हृदय में स्थान बनाना यकायक नही था, इसके पीछे अपना अथक प्रयास कर रहा एक कुशल योद्धा भी था, जिसे उत्तराखंड की संस्कृति और भौगोलिक स्वरूप की बेहतर जानकारी थी। साथ ही जानकारी थी बल को आधुनिक कैसे बनाया जाए। इसी का परिणाम है कि आज एसडीआरएफ अत्याधुनिक रेस्कयू उपकरणों से लैस है। बल के पास सोनार सिस्टम, विकटिंग लोकेटिंग कैमरा, रेस्टुयूब, अंडरवाटर ड्रोन जैसे नवीनतम उपकरण हैं।
गठन के मात्र 7 वर्षो में एसडीआरएफ एक कम्पनी से बढ़कर 4 कम्पनियों तक पहुंच गई है, जिसके पास रेस्कयू बल के अतिरिक्त महिला रेस्कयू दस्ता, कुशल ट्रेनिग विंग, नवीनतम उपकरणों से लैस फ्लड टीम, डॉग स्क्वायड दस्ता, पर्वतारोहण रेस्कयू टीम, मौजूद है, जो नवीनतम संचार क्यूडीए सेटेलाइट फोन से सुसज्जित है।
इन 7 वर्षो में राज्य आपदा प्रतिवादन बल में 8 सेनानायक की नियुक्ति हुई, वहीं उच्च स्तर पर उपमहानिरीक्षक से पदोन्नति बाद भी संजय गुंज्याल को महानिरीक्षक एसडीआरएफ जैसे महत्वपूर्ण पद की जिम्मेदारी प्रदान की गई।
एसडीआरएफ के विस्तार को गति देते हुए इस तेज तर्रार ऑफिसर ने जन जागरूकता अभियानों को अनेक स्तर पर अनेक स्वरूप में प्रदेश भर में शुरू किया। आपदा के दौरान मानव क्षति न्यूनीकरण को बल प्रदान करने के लिए दूरस्त एवमं सीमांत क्षेत्रो तक व्याख्यान, गोष्ठियां, कैम्प, प्रशिक्षण, नुक्कड़ नाटक के माध्यम से जनजागरूकता अभियानो को गति दी गयी। आज इसी का परिणाम है कि प्रदेश भर में लगभग 2 लाख लोगों तक आपदा में बचाव की जानकारी पहुंची है। आज रेस्कयू बल की अनेक उपलब्धियों में 1500 से अधिक रेस्कयू ऑपरेशनों के माध्यम से लगभग 5500 घायलों की जिंदगी बचाने की मानवीय उपलब्धि भी सम्मलित है।
सुपर कॉप के नाम से प्रचलित ऑफिसर ने एसडीआरएफ महानिरीक्षक के पद पर रहते हुए अनेक बड़े रेस्कयू अभियानों का नेतृत्व स्वयं भी किया, जिसमे पिथौरागढ़ में बतसडी, पांगला जैसे घटनाएं सम्मलित हैं।
एक सीमांत प्रदेश से उठकर इस पद पर पहुंचने पर भी अपने सरल स्वभाव और मानवीय कार्यो के लिए पहचान बनाए इस ऑफिसर ने एसडीआरएफ बल में मानवीय कार्यों के अपने जुनून को सुचारू रखा। संजय गुंज्याल ने एसडीआरएफ के माध्यम से अनेक बार निःशुल्क चिकित्सा कैंप, निशुल्क कम्बल वितरण अभियान विभिन्न स्वयंसेवी संस्थाओं की सहभागिता से संम्पन कराए हैं, जिससे हजारों गरीब लाचार एवं बीमार लोग लाभवन्तित हुए।
आज हिमालयी प्रदेश के एक छोटा सा रेस्कयू बल, जिसे कोविड में बेतरीन कार्यो के लिए स्कॉच अवार्ड से सम्मानित किया जाता है। पदक प्राप्ति की संख्यां में जिसके सबसे अधिक जवान सम्मानित होते हैं। किसी भी आपदा/दुर्घटना में त्वरित गति से पहुंचने की मिशाल-ए -तौर जिसके जवानों को हनुमान पुलिस की संज्ञा दी जाती है। जिस बल के सदस्यों के घटनास्थल पर पहुंचना ही सुरक्षा का अहसास देता है, अवश्य ही उसके आगाज का स्वर्णिम पथ एक कुशल सारथि के हाथों में रहा होगा।
( आईपीएस संजय गुंज्याल के सात वर्ष एसडीआरएफ महानिरीक्षक के पद पर रहने के पश्चात स्थान्तरण पर विशेष)