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Thursday, November 21, 2024

खलंगा युद्ध के वीर-वीरांगनाओं को दी श्रद्धांजली

  • ,विश्वव्यापी कोरोना महामारी के चलते इस वर्ष नहीं किया गया खलंगा मेले का आयोजन
  • समिति के सदस्यों ने सूक्ष्म पूजा-अर्चना कर दी श्रद्धांजली

देहरादून, 29 नवम्बर बलभद्र खलंगा विकास समिति की ओर से ऐतिहासिक खलंगा युद्ध के वीर-वीरांगनाओं को खलंगा युद्ध स्मारक में श्रद्धांजलि दी गई तथा नालापानी स्थित चंद्रायनी मंदिर में पूजा-अर्चना की गई।
रविवार को समिति के अध्यक्ष कर्नल डीएस खड़का, संरक्षक ब्रिगेडियर पीएस गुरूंग, महामंत्री जितेंद्र खत्री, दीपक कार्की एवं कई अन्य लोगों ने सहस्त्रधारा मार्ग स्थित युद्ध स्मारक में पुष्पगुच्छ चढ़ाकर श्रद्धांजलि अर्पित की। इसके बाद नालापानी स्थित बलभद्र खलंगा युद्ध स्मारक पर पुष्पांजलि चढ़ाते हुए वीरों को श्रद्धांजलि अर्पित की एवं चंद्रयानी मंदिर में यज्ञ और पूजा-अर्चना की।


श्रद्धांजलि अर्पित करने वालों में स्मिति के उपाध्यक्ष विनय गुरूंग, कोषाध्यक्ष शशिकांत सहाय, कर्नल सीबी थापा, कर्नल एमबी राना, कर्नल एसएस शाही, कर्नल जीवन क्षेत्री, पूजा सुब्बा, कमला थापा, कर्नल भूपेंद्र खत्री, कर्नल बीएस क्षेत्री, कर्नल जीवन क्षेत्री, पूर्णिमा प्रधान, रायपुर के कीर्तन मंडली के सदस्य शामिल थे।
स्मिति की मीडिया प्रभारी प्रभा शाह ने बताया कि खलंगा युद्ध के सेनानायक वीर बलभद्र थापा के जांबाज सैनिक और वह स्वयं इसी चंद्रायनी मंदिर में आकर पूजा-अर्चना किया करते थे। यह मंदिर जंगल में खुले स्थान पर है। शाह ने बताया कि मान्यता है कि इस मंदिर पर छत का निर्माण करने पर भी छत नहीं रहती है। समिति की ओर से मंदिर की चाहरदीवारी निर्माण के लिए वन विभाग से मांग की गई है।


मीडिया प्रभारी शाह ने बताया कि नालापानी पर्वतीय श्रृंखला के सबसे ऊंचे शिखर पर सेनापति बलभद्र थापा का खलंगा (किला), जो आज भी गर्व से मस्तक उठाए खड़ा है, 1814 में हुए एंग्लो-गोर्खा युद्ध का प्रतीक है। सन् 1814 में लगभग 600 वीर गोर्खा तथा उत्तर भारत के गढ़वाली-कुमाउंनी एवं स्थानीय योद्धा, जिनमें महिलाएं और बच्चों भी शामिल थे, ने आधुनिक हथियारों से लैस अंग्रेजी सेना की एक डिवीजन के तीन आक्रमणों को न केवल बुरी तरह विफल किया बल्कि उनके सेनानायक जनरल जिलेप्सी को धाराशाही कर दिया था। अंग्रेजी सेना द्वारा रसद एवं पानी के एकमात्र स्रोत को बंद करने और अधिकतर सैनिकों के घायल होने के बावजूद वीर सेनानायक बलभ्रद ने अंग्रेजी सेना से हार एवं समर्पण को स्वीकार नहीं किया। दुर्ग में बचे हुए अपने 70 सैनिकों के साथ इस गर्जना के साथ ‘मैं हारा नहीं हूं, खलंगा अजेय है, मैं स्वेच्छा से दुर्ग छोड़कर जा रहा हूं‘ कहते हुए वीर सेनानायक खलंगा छोड़कर नाहन(मलौन) की ओर चले गए। उन्हीं वीरों की स्मृति में बलभद्र खलंगा विकास समिति पिछले 45 वर्षों से प्रतिवर्ष सागरताल, नालापानी में भव्य मेले का आयोजन करती आ रही है। इस वर्ष विश्वव्यापी कोरोना महामारी के प्रकोप के चलते मेले का आयोजन ना करते हुए समिति के सदस्यों ने सीमित संख्या में सूक्ष्म पूजा-अर्चना एवं श्रद्धांजलि कार्यक्रम का आयोजन किया।

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