देहरादून, 08 दिसंबर। उत्तराखंड में लोकायुक्त एक भ्रष्टाचार विरोधी प्राधिकरण है, जिसे मंत्रियों, विधायकों और लोक सेवकों के खिलाफ शिकायतों की जांच के लिए बनाया गया है, लेकिन 2013 के बाद से यह पद खाली है और नियुक्ति को लेकर कोर्ट के निर्देश के बावजूद सरकार ने इसे बहाल नहीं किया है, हालांकि, हालिया चर्चाओं और अदालती आदेशों के बाद एक बार फिर नियुक्ति की उम्मीद जगी है। लोकायुक्त की स्थापना उत्तराखंड लोकायुक्त अधिनियम, 2014 के तहत की गई थी, लेकिन राज्य में पिछले एक दशक से कोई नियुक्त नहीं हुआ है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए राज्य सरकार को समय-सीमा दी थी, लेकिन आज तक नियुक्ति नहीं हो पायी हैं। नियुक्ति प्रक्रिया में राजनीतिक बाधाएं और इच्छाशक्ति की कमी रही है, जिससे एक दशक से भी अधिक समय से यह पद रिक्त है। उत्तराखंड में लोकायुक्त की नियुक्ति एक लंबित मुद्दा है, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ एक महत्वपूर्ण संस्था होने के बावजूद, राजनीतिक और प्रशासनिक कारणों से लंबे समय से अटका हुआ है। उत्तराखंड के वर्तमान लोकायुक्त का पद रिक्त है क्योंकि अंतिम लोकायुक्त का कार्यकाल 2013 में समाप्त हो गया था और अभी तक किसी नए लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं हुई है। राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति प्रक्रिया 2023 में शुरू की गई थी, लेकिन समाचारों के अनुसार, अब तक नियुक्ति नहीं हो पाई है। उत्तराखंड में अंतिम लोकायुक्त, एमएम घिल्डियाल, थे और उनका कार्यकाल 2013 में समाप्त हो गया था। इसके बाद से, न तो पिछली कांग्रेस सरकार और न ही वर्तमान भाजपा सरकार ने किसी नए लोकायुक्त की नियुक्ति की है। एसएचए रजा राज्य के पहले लोकायुक्त थे और उनका कार्यकाल 2002 से 2008 तक था और उनके बाद घिल्डियाल ने कार्यभार संभाला था। देहरादून के यमुना कालोनी मे लोकायुक्त कार्यालय तो है, लेकिन पिछले एक दशक से वहां कोई लोकपाल नहीं है। कर्मचारियों के वेतन और रख रखाव के नाम पर हर साल 2 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
विगत 10 मार्च 2025 को नैनीताल हाईकोर्ट ने प्रदेश में लोकायुक्त नियुक्त नहीं करने के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की। चीफ सेक्रेट्री ने पूर्व के आदेश के अनुपालन में शपथपत्र पेश कर अदालत को बताया कि लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए राज्य सरकार ने कमेटी गठित कर दी है। इसकी एक बैठक 22 फरवरी 2025 को हो चुकी है। बताया गया कि राज्य सरकार लोकायुक्त नियुक्त करने के लिए लोकायुक्त एक्ट के प्रावधानों का पूर्ण रूप से पालन कर रही है। इस पर कोर्ट ने सरकार को अगली तिथि तक स्थिति से अवगत कराने के लिए कहा है। मुख्य न्यायाधीश जी नरेंदर एवं न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। गौलापार निवासी रविशंकर जोशी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार ने अभी तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की है, जबकि संस्थान के नाम पर दो से तीन करोड़ रुपये सालाना खर्च हो रहे हैं। याचिका में कहा कि कर्नाटक और मध्य प्रदेश में लोकायुक्त ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्र्वाई कर रहे हैं लेकिन उत्तराखंड में तमाम घोटाले हो रहे हैं और यहां लोकायुक्त की नियुक्ति तक नहीं हुई है। राज्य की सभी जांच एजेंसियां सरकार के अधीन हैं। उत्तराखंड में कोई भी ऐसी स्वत्रंत जांच एजेंसी नहीं है जिसे यह अधिकार हो कि वह बिना शासन की पूर्वानुमति और दबाव के किसी भी राजपत्रित अधिकारी के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मुकदमा पंजिकृत कर सके। स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के नाम पर प्रचारित किया जाने वाला विजिलेंस विभाग भी राज्य पुलिस का ही हिस्सा है जिसका सम्पूर्ण नियंत्रण पुलिस मुख्यालय, सतर्कता विभाग या मुख्यमंत्री कार्यालय के पास है।
उत्तराखंड लोकायुक्त भारत में उत्तराखंड राज्य के लिए संसदीय लोकपाल है। यह एक उच्च स्तरीय वैधानिक पदाधिकारी है, जो सत्ता के दुरुपयोग, कुप्रशासन और भ्रष्टाचार से संबंधित मुद्दों में मंत्रियों , विधायकों , प्रशासन और राज्य के लोक सेवकों के खिलाफ जनता की शिकायतों को दूर करने के लिए बनाया गया है। इसका गठन पहली बार उत्तराखंड लोकायुक्त अधिनियम, 2014 के तहत किया गया था और उत्तराखंड के राज्यपाल ने इसे मंजूरी दी थी। 16 जनवरी 2014 को भारत की संसद द्वारा अपनाए गए लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम, 2013 के साथ , भारत में प्रत्येक राज्य को एक वर्ष के भीतर अपना लोकायुक्त नियुक्त करना आवश्यक था। उप-लोकायुक्त लोकायुक्त का एक डिप्टी होता है और उसके काम में सहायता करता है और समय से पहले पद खाली होने की स्थिति में प्रभारी लोकायुक्त के रूप में कार्य करता है।
उत्तराखंड लोकायुक्त को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, उत्तराखंड के मंत्रियों, उत्तराखंड के विपक्ष के नेता और उत्तराखंड सरकार के अधिकारियों के खिलाफ आरोपों या शिकायतों की जाँच करने का पूर्ण और अनन्य अधिकार प्राप्त है। राज्य का लोकायुक्त अधिनियम, जो भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक हथियार के रूप में कार्य करता है, मुख्यमंत्रियों, पूर्व मुख्यमंत्रियों, राज्य सरकार के अधिकारियों, राज्य के मंत्रियों, आईएएस अधिकारियों और सभी लोक सेवकों को कवर करता है। उत्तराखंड लोकायुक्त को राज्य सरकार के अधिकारियों, राज्य लोक सेवकों और राज्य सरकार के निर्वाचित पदाधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों और संबंधित मामलों की जाँच करने का अधिकार प्राप्त है।
उत्तराखंड लोकायुक्तों की सूची :-
1 एसएचए रज़ा 2002–2008
2 एम.एम. घिल्डियाल 2008–2013
उत्तराखंड की स्थिति:-
उत्तराखंड में 2013 के बाद से कोई लोकायुक्त नहीं है, जिसके बाद से कई शिकायतें लंबित हैं और उच्च न्यायालय ने नियुक्ति के निर्देश दिए हैं।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में चयन समिति की बैठकें हुईं और नाम चर्चा में हैं।
राज्यपाल की मंजूरी के बाद ही अंतिम निर्णय होगा।
निष्कर्ष:- उत्तराखंड में लोकायुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन यह एक लंबी प्रक्रिया है और राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद ही यह पूरी होगी, जिससे राज्य को एक दशक बाद अपना लोकायुक्त मिल सकेगा।




