देहरादून 30 दिसंबर, आज शुक्रवार को सेवला कलां, चंद्रबनी, देहरादून स्थित राज रानी फार्म्स में तमु धीं (गुरु सामान) समिति द्वारा गोरखा समुदाय के गुरुङ्ग उपजाति का नव वर्ष “तमु लोसार” उत्सव धूमधाम से मनाया गया। आज के समारोह के मुख्य अतिथि चेतन गुरुङ्ग, उपाध्यक्ष टेबल टेनिस फेडरेशन आफ इण्डिया दीप प्रज्वलित करके आयोजन का शुभारम्भ किया। गुरुंग अन्य गोरखा समुदाय के लोगों ने साथ मिल कर तो ल्हो (बाध वर्ष) को विदा तथा ल्हो (बिल्ली वर्ष) का स्वागत करते हुए विभित्र सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। पुरे देहरादून के गुरु व अन्य गोरखा समुदाय के अन्य सभी उपजातियाँ राजरानी फार्म सेवलाकला चन्द्रवनी में एकत्र हो कर तमु ल्होसार “तमु नव वर्ष खुशी और उत्साह के साथ विभिन्न रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम, मिस तमुस्यो खिल्होसार प्रतियोगिताओं का आयोजन करते हुए हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। समारोह में पारम्परिक नेपाली भोजन सेल रोटी, गोरखा चटनी व मासू भात का भी आनन्द लिया गया।
तमु लोसार उत्सव कार्यक्रम में मौजूद अध्यक्ष केप्टन बसंत कुमार गुरुंग (से नि), उपाध्यक्ष धन बहादुर गुरुंग, कोषाध्यक्ष कुमान सिंह कुमार गुरुंग, महासचिव तिलक राज गुरुंग, वरिष्ठ संरक्षक ब्रिगेडियर पी एस गुरुंग ने अतिथियों का पारंपरिक वाद्य यंत्र नौमती बाजा” बजा कर भव्य स्वागत किया। बच्चों ने सांस्कृतिक नृत्य पेश करके दर्शको का मन मोह लिया।
कार्यक्रम में मिस तमु ल्होसार प्रतियोगिता का भी आयोजन भी किया गया जिसमें विजयी प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया
प्रथम पुरस्कार विजेता — मिस वैशाली गुरूंग
द्वितीय पुरस्कार विजेता– मिस मानवी गुरूंग
तृतीय पुरस्कार विजेता – सिमरन गुरूंग
बताते चलें ल्होसार क्यों मनाया जाता है ? गुरु अपनी भाषा में स्वयं को “तमु” कहते हैं जो मूलतः नेपाल के मध्य-पश्चिम हिमालयी क्षेत्र के निवासी हैं। आज उनमें से बड़ी संख्या में भारत और विश्व के विभिन्न भागों में रह रहे हैं। विक्रमी संवत् पौष माह के 15 तारीख को गुरु समुदाय का “तमु संवत्” अथवा “गुरू पंचाग आरम्भ होता है इसी दिन को “तमु ल्होसार के रूप में मनाया है। गुरुंग भाषा में “ल्होसार” का शाब्दिक अर्थ है “नव वर्ष का आगमन” ल्हो का अर्थ है “वर्ष” तथा “सार का अर्थ है नया। गुरु शास्त्रों के अनुसार समय चक्र को 12 वर्षों (वर्गों) में विभाजित किया गया है जिसे “होकर कहते हैं, समय चक्र के इन बारह वर्षों को विभिन्न पशु पक्षियों के नाम से जाना जाता है।
ल्होसार के दिन गुरुङ्ग समुदाय के लोग घरों में सुबह नहा धोकर अपने पित्रों तथा कुल देवता की पूजा अर्चना करते हैं। एक दूसरे की “गुरु नव वर्ष की शुभ कामनाएं देते हैं। बड़े बुजुर्ग घर के छोटे सदस्यों को “रीपा” एक प्रकार का पवित्र सूत्र गले में बांध कर आने वाले नव वर्ष शुभ होने का आशिर्वाद देते हैं। विशेषकर घर परिवार में जिस सदस्य का वर्ग आगमन हुआ है सभी उसे आशिर्वाद व शुभ कामना देते हैं। सभी मिल जुल कर सामुहिक वन भोज का आयोजन करते हुए ल्होसार पर्व को भव्य रूप से मनाते है।