देहरादून, उत्तराखंड में प्रचार के अंतिम दौर तक आगे चल रही कांग्रेस की कुछ गलतियां उस पर भरी पड़ गईं और बीजेपी ने विरोधियों को पस्त कर दोबारा सत्ता हासिल कर ली है। उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव पर स्थानीय और राष्ट्रीय कई मुद्दों का असर भी साफ दिखा, वोटर इतना साइलेंट था कि बड़े बड़े दिग्गज ज्योतिष, रणनीतिकार भी हवा नहीं पहचान पा रहे थे। चुनाव विश्लेषक भी इस सवाल से बचने का सीधा सा जवाब रहता था कि “बराबर की लड़ाई” है और कुछ विश्लेषकों के हिसाब से पांच साल कांग्रेस और पांच साल भाजपा सरकार रहने के गणित से अनुमान लगा रहे थे। उनके गणित के हिसाब से अब कांग्रेस की बारी थी और काँग्रेस का कार्यकर्त्ता भी इसी अनुमान से तैयारी से में था। उत्तराखंड के मैदानी इलाकों में महंगाई और किसान आंदोलन जैसे मुद्दों ने अपना असर दिखाया लेकिन पहाड़ में मोदी और योगी की रैली का जादू चला तो हवा भी बदल गई। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद 22 साल के इतिहास में प्रदेश में पहली बार भाजपा ने पांच साल कांग्रेस और पांच साल भाजपा सरकार बनने का मिथक भी तोड़ा है। प्रदेश के इतिहास में प्रदेश में पहली बार कोई सरकार दोबारा सत्ता में आई है।
कांग्रेस में गुटबाजी हावी रही। पहले हरीश रावत और प्रदेश अध्यक्ष रहे प्रीतम सिंह के बीच लगातार तकरार चलती रही। सूत्रों की माने तो उनकी प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव से भी रावत की नहीं बनी। हरीश रावत ने सीएम चेहरा घोषित न किए जाने से भी नाराजगी जताई थी, इसके बाद ये मामला दिल्ली हाई कमान के पास पहुंचा तो राहुल गांधी ने हरीश रावत के नेतृत्व में चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया, लेकिन फिर भी उन्हें पंजाब की तर्ज पर सीएम चेहरा घोषित नहीं किया। माना जा रहा है कि इस खींचतान से जनता के बीच कांग्रेस की साख को धक्का लगा और लगभग आठ से दस सीटों का नुकसान हुआ।
बताते चलें कभी हरीश रावत के करीबी रहे दिवंगत इंदिरा हृयदेश बाद बड़े ब्राह्मण नेता पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने 6 साल के लिए निलंबित होने पर चुनाव से ठीक पहले बीजेपी का दामन थाम लिया। इससे कांग्रेस को ब्राह्मण वोटों का बड़ा झटका लगा। उत्तराखंड में इस वर्ग का लगभग 19 फीसदी वोट है। पिछले चुनाव में किशोर से उनकी टिहरी की परंपरागत सीट ले कर देहरादून के सहसपुर सीट से लड़ाया गया। यहां से वह हार गए, लेकिन इस बार किशोर उपाध्याय बीजेपी के टिकट पर टिहरी से चुनाव जीत गए।
चुनावी विश्लेषकों की माने तो जहां बीजेपी के दिग्गज नेता घर-घर जाकर और रैलीयां कर के वोट मांग रहे थे वहीं कांग्रेस के बड़े नेता होटलों और कांग्रेस भवन तक सीमित रह कर पत्रकार वार्ता करते रहे। एक और बड़ी वजह कांग्रेस अपने नेताओं की जबान को काबू में नहीं रख सके। चुनाव से ठीक पहले सहसपुर से कांग्रेस से टिकट मांग रहे अकील अहमद ने बयान दिया कि कांग्रेस सत्ता में आई तो प्रदेश में मुस्लिम यूनिवर्सिटी बनाएंगे। बस क्या था, बीजेपी ने इसे चुनावी मुद्दा बना लिया। बाद में हरीश रावत को भी सफाई देनी पड़ी, लेकिन तब तक बीजेपी ने अपना काम कर लिया था, सहसपुर, विकासनगर और धर्मपुर सीट तक इसका असर देखने में आया और ये तीनो संभावित सीटें बीजेपी की झोली में चली गईं।
बताते चलें कि प्रदेश के पहाड़ी जिलों में धार्मिक भावना महत्व है बीजेपी ने इसका भी पूरा इस्तेमाल किया। प्रधानमंत्री मोदी खुद कई बार उत्तराखंड में कई चुनावी रैली करने के लिए आए। बताया जा रहा है कि मोदी के चुनावी कैंपेन से राज्य की आठ से दस सीटों पर सीधे असर पड़ा। इसके अलावा बीजेपी ने केंद्रीय मंत्रियों और स्टार प्रचारकों ने प्रदेश में जगह-जगह लगातार रैलीयां की तथा मतदाताओं को कुछ और विकल्प सोचने ही नहीं दिया बाकि बची खुची कसर सीएम योगी ने कोटद्वार और टिहरी की जनसभा से चुनाव पूरी तरह से पलट कर रख दिया।