21.9 C
Dehradun
Saturday, April 19, 2025

7 मार्च से शुरू होगे होलाष्टक, 13 मार्च को होगा समापन

देहरादून, 03 मार्च। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने बताया की होलाष्टक, फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से लेकर फाल्गुन पूर्णिमा (होली) तक के आठ दिनों को कहते हैं। इन दिनों को अशुभ माना जाता है इसलिए विवाह, गृह प्रवेश, नामकरण, मुंडन आदि शुभ कार्य वर्जित होते हैं। पंचांग के अनुसार इस वर्ष 2025 में होलाष्टक की शुरुआत 07 मार्च, शुक्रवार से हो रही है। वहीं इसका समापन 13 मार्च गुरुवार को होलिका दहन के साथ होगा। शास्त्रों और पौराणिक मान्यताओं में इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण बताए गए हैं। होलाष्टक का सबसे प्रमुख कारण हिरण्यकश्यप और प्रह्लाद की कथा से जुड़ा है। हिरण्यकश्यप , जो स्वयं को भगवान मानता था, अपने पुत्र प्रह्लाद की भक्ति से क्रोधित था। उसने फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से प्रह्लाद को कठोर यातनाएं देनी शुरू कीं। इन आठ दिनों में प्रह्लाद को कई प्रकार की यातनाएँ दी गईं, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से वे बच गए। अंततः फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन हुआ और प्रह्लाद की विजय हुई। इसलिए इन आठ दिनों को पीड़ा, संघर्ष और नकारात्मक ऊर्जा का समय माना जाता है, और इस दौरान शुभ कार्य नहीं किए जाते। ज्योतिषीय मान्यता के अनुसार अष्टमी से पूर्णिमा तक नवग्रह भी उग्र रूप लिए रहते है ,यही वजह है कि इस अवधि में किए जाने वाले शुभ कार्यों में अमंगल होने की आशंका बनी रहती है। होलाष्टक में अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहू उग्र रहते हैं एवं नकारात्मकता की अधिकता रहती है।इसका असर व्यक्ति के सोचने-समझने की क्षमता पर भी पड़ता है। धार्मिक दृष्टि से यह समय भक्ति, तपस्या और संयम का माना गया है। इस दौरान देवी-देवताओं की साधना, जप और व्रत करने से विशेष लाभ मिलता है। तांत्रिक दृष्टि से यह समय सिद्धियों और साधनाओं के लिए उपयुक्त माना जाता है, लेकिन शुभ कार्यों के लिए नहीं। होलाष्टक की परंपरा के पीछे सिर्फ धार्मिक कारण ही नहीं है बल्कि इसका वैज्ञानिक महत्व भी है। इनके अनुसार होलाष्टक का विज्ञान प्रकृति और मौसम के बदलाव से जुड़ा हुआ है।इन दिनों वातावरण में बैक्टीरिया वायरस अधिक सक्रिय होते हैं। सर्दी से गर्मी की ओर जाते इस मौसम में शरीर पर सूर्य की पराबैगनी किरणें विपरीत प्रभाव डालती हैं।होलिका दहन पर जो अग्नि निकलती है वो शरीर के साथ साथ आसपास के बैक्टीरिया और नकारात्मक ऊर्जा काेे समाप्त कर देती है। क्योंकि गाय के गोबर से बने कंडे, पीपल, पलाश, नीम और अन्य पेड़ों की लकड़ियों से होलिका दहन होने पर निकलने वाला धुंआ सेहत के लिए अच्छा होता है। इसलिए होलाष्टक के दिनों में उचित खान-पान की सलाह दी जाती है।

 

 

 

Related Articles

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

spot_img

Stay Connected

22,024FansLike
0FollowersFollow
0SubscribersSubscribe

Latest Articles

- Advertisement -spot_img
error: Content is protected !!