देहरादून, 15 फरवरी। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने बताया की हिंदू पंचांग के अनुसार होली का त्योहार14 मार्च को मनाया जाएगा, क्योंकि फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि की 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 25 मिनट पर शुरू होगी। पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 25 मिनट पर हो रहा है और तिथि का समापन 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर होगा। होली का त्योहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है और उसके अगले दिन लोग रंग और गुलाल से एक-दूसरे के साथ होली खेलते हैं। होलिका दहन इस साल 13 मार्च की रात को होगा और अगले दिन 14 मार्च को होली खेली जाएगी। होलिका दहन 13 मार्च को देर रात होगा। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 26 मिनट से लेकर रात 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा। इसी समय होलिका दहन किया जाएगा। 13 मार्च को देर रात होलिका दहन होगा। शुभ मुहूर्त रात 11 बजकर 26 मिनट से शुरू होगा। यह रात 12 बजकर 30 मिनट तक चलेगा।
डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुये बताया की होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय लोगों का त्यौहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होली रंगों का तथा हँसी-खुशी का त्योहार है। यह भारत का एक प्रमुख और प्रसिद्ध त्योहार है, जो आज विश्वभर में मनाया जाने लगा है। रंगों का त्यौहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते हैं। दूसरे दिन, जिसे प्रमुखतः धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन इसके अन्य नाम हैं, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल लगाते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। होली का त्यौहार वसंत पंचमी से ही आरंभ हो जाता है। उसी दिन पहली बार गुलाल उड़ाया जाता है। इस दिन से फाग और धमार का गाना प्रारंभ हो जाता है।
होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। उसने अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने पर ही पाबंदी लगा दी थी। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रह्लाद ईश्वर भक्त था। प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध होकर हिरण्यकशिपु ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। प्रतीक रूप से यह भी माना जाता है कि प्रह्लाद का अर्थ आनन्द होता है। वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलाने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।
होली से सम्बन्धित मुख्य कथा के अनुसार एक नगर में हिरण्यकश्यप नाम का दानव राजा रहता था। वह सभी को अपनी पूजा करने को कहता था, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का उपासक भक्त था। हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को बुलाकर राम का नाम न जपने को कहा तो प्रहलाद ने स्पष्ट रूप से कहा, पिताजी! परमात्मा ही समर्थ है। प्रत्येक कष्ट से परमात्मा ही बचा सकता है। मानव समर्थ नहीं है। यदि कोई भक्त साधना करके कुछ शक्ति परमात्मा से प्राप्त कर लेता है तो वह सामान्य व्यक्तियों में तो उत्तम हो जाता है, परंतु परमात्मा से उत्तम नहीं हो सकता।
यह बात सुनकर अहंकारी हिरण्यकश्यप क्रोध से लाल पीला हो गया और नौकरों सिपाहियों से बोला कि इसको ले जाओ मेरी आँखों के सामने से और जंगल में सर्पों में डाल आओ। सर्प के डसने से यह मर जाएगा। ऐसा ही किया गया। परंतु प्रहलाद मरा नहीं, क्योंकि सर्पों ने डसा नहीं। प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भगवान श्रीकृष्ण ने इस दिन पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी खु़शी में गोपियों और ग्वालों ने रासलीला की और रंग खेला था।
पंचांग के अनुसार, होली का त्यौहार प्रतिवर्ष चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। अगर प्रतिपदा तिथि दो दिन पड़ रही हो तो प्रथम दिन पर ही धुलण्डी (वसन्तोत्सव या होली) को मनाया जाता है। होली के पर्व को बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए मनाते हैं। बसंत ऋतु में वातावरण में व्याप्त रंगों-बिरंगी छटा को ही रंगों से खेलकर वसंत उत्सव होली के रूप में दर्शाया जाता है। हरियाणा में होली को मुख्यतः धुलंडी के नाम से भी जाना जाता है।
होलिका दहन 13 मार्च, गुरुवार को है। शुभ मुहूर्त में होलिका दहन रात्रि 11:26 बजे (13 मार्च) से शुरू होकर 12:29 बजे (14 मार्च) तक रहेगा, कुल 1 घंटा 4 मिनट का समय रहेगा। इसके अगले दिन रंगों वाली होली का त्योहार 14 मार्च, 2025 (शुक्रवार) को मनाया जाएगा. पूर्णिमा तिथि (प्रारम्भ) 13 मार्च, 2025 की सुबह 10:35 बजे से शुरू हो जाएगी।
होलिका दहन तिथि – 13 मार्च 2025, गरुवार
होलिका दहन मुहूर्त – रात्रि 11:26 बजे (13 मार्च ) से मध्य रात्रि 12:29 बजे तक, (14 मार्च )
कुल समय अवधि – 1 घंटा 04 मिनट
रंगवाली होली 14 मार्च 2025 (शुक्रवार ) को मनाई जाएगी
पूर्णिमा तिथि (प्रारंभ) – सुबह 10:35, 13 मार्च 2025
पूर्णिमा तिथि (समाप्त) – दोपहर 12:23,14 मार्च 2025