देहरादून। आज श्रीमत्परमहंस परिव्राजकाचार्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ जूनापीठाधीश्वर आचार्यमहामण्डलेश्वर अनन्तश्रीविभूषित पूज्यपाद स्वामी अवधेशानन्द गिरि महाराज “पूज्य आचार्यश्री जी” ने हिमालय स्थित भगवान श्री बदरीविशाल के पावन दर्शन कर परम आनन्द एवं भावमग्नता का अनुभव किया। हिमालय की दिव्य श्रृंखलाओं के मध्य स्थित भगवान बदरीनाथ के पावन गर्भगृह में “पूज्य आचार्यश्री जी” ने राष्ट्रकल्याण, लोकमंगल एवं समस्त मानवता के लिए मंगल प्रार्थना की। भगवद-दर्शन एवं आराधना का यह क्षण अध्यात्म और भक्ति की उस भावधारा का प्रतीक बना, जहाँ साधक और ईश्वर में कोई भेद नहीं रह जाता; केवल एकात्मता, शान्ति और ब्रह्मानन्द का अनुभव शेष रह जाता है।
उत्तराखण्ड की हिमशिखरावलियों में स्थित श्रीबद्रीनाथ धाम केवल एक तीर्थ ही नहीं, बल्कि स्वयं ईश्वर के साक्षात्कार का अनुपम पावन स्थल है। जब साधक यहाँ पहुँचता है, जहाँ अलकनंदा का निर्मल नाद गूँजता है, हिमालय की श्वेत आभा नयन तृप्त करती है, और वायु में तप, भक्ति तथा वेदमंत्रों की अनुगूँज सुनाई देती है, तब अनुभव होता है कि यह भूमि साधारण नहीं, स्वयं ब्रह्म का साकार लोक है। यहाँ भगवान के दर्शन के समय में बाह्य और आंतरिक जगत् की सीमाएँ विलीन हो जाती हैं। मन्दिर की पवित्रता, वेदमंत्रों की गूँज और भगवान श्री बदरी विशाल के साक्षात् दर्शन साधक के अंतःकरण में एक ऐसी अवर्णनीय स्पंदना उत्पन्न करते हैं, जिसमें मन मौन हो जाता है और केवल ब्रह्मानन्द रह जाता है। शब्द लुप्त हो जाते हैं, जगत खोने लगता है, और एक ही अनुभूति जाग्रत होती है कि भगवान उपस्थित हैं। बद्रीनाथ की निस्तब्धता में साधक अनुभव करता है कि जीवन का चरम सत्य किसी दूरस्थ लोक में नहीं, इसी नश्वर जगत् के भीतर यहाँ विशालापुरी में निहित है। शास्त्र कहते हैं कि “यत्र नारायणः स्वयं बदरीवनमाश्रितः।” यह वही भूमि है, जहाँ भगवान स्वयं तपस्वी बनकर मानवता को त्याग, साधना और करुणा का सन्देश देते हैं। आज इस हिमालय पावन तीर्थयात्रा आचार्य” के साथ उत्तर प्रदेश “राज्य महिला आयोग” की उपाध्यक्षा आदरणीया श्रीमती अपर्णा यादव , रोहित माथुर जी तथा अमेरिका के प्रमुख सहयोगी सुधाकर मेनन सम्मिलित रहे।