देहरादून, 22 मई। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुये बताया की ज्येष्ठ माह सुहागिन महिलाओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण होता है। इसका कारण है वट सावित्री व्रत। दरअसल, ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि पर वट सावित्री का पर्व मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं पति की लंबी उम्र व तरक्की के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। मान्यता है कि इस दिन देवी सावित्री ने यमराज से पति सत्यवान के प्राण वापिस ले लिए थे। इस पर्व में मुख्य रूप से वट वृक्ष की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि इस पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी का वास होता है। इसलिए इसकी उपासना करने से तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस साल 26 मई 2025 को वट सावित्री का व्रत रखा जाएगा। इस तिथि पर भरणी नक्षत्र के अलावा शोभन व अतिगण्ड योग का संयोग रहेगा। वहीं इस दिन पूजा के लिए तीन शुभ मुहूर्त बन रहे हैं।
वट सावित्री व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त :-
पहला शुभ मुहूर्त :- सुबह 8 बजकर 52 मिनट से लेकर 10 बजकर 25 मिनट तक शुभ चौघड़िया मुहूर्त बन रहा है।
दूसरा शुभ मुहूर्त :- सुबह 11 बजकर 51 मिनट से दोपहर 12 बजकर 46 मिनट तक अभिजीत मुहूर्त बना रहेगा।
तीसरा शुभ मुहूर्त :- वट सावित्री व्रत के दिन दोपहर में 3 बजकर 45 मिनट से 5 बजकर 28 मिनट तक भी पूजा का शुभ योग बन रहा है।
वट सावित्री पंचांग :-
नक्षत्र- भरणी 08:23 तक
योग- शोभन 07:01 तक
योग- अतिगण्ड 26:54 तक
करण- शकुनि 12:11 तक
करण- चतुष्पाद 22:21 तक
सूर्य- वृषभ तक
चन्द्र- वृषभ 13:40 तक
गुलिक-14:01-15:44 तक
अमृतकाल- 27:25-28:50
वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना गया है। भारतीय संस्कृति में यह व्रत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है। इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं। स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को यह व्रत करने का विधान है, वहीं निर्णयामृत आदि के अनुसार ज्येष्ठ मास की अमावस्या को व्रत करने की बात कही गई है। तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है : सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना। कई व्रत विशेषज्ञ यह व्रत ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक करने में भरोसा रखते हैं। इसी तरह शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से पूर्णिमा तक भी यह व्रत किया जाता है। विष्णु उपासक इस व्रत को पूर्णिमा को करना ज्यादा हितकर मानते हैं। वट सावित्री व्रत में ‘वट’ और ‘सावित्री’ दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है। पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है। पाराशर मुनि के अनुसार- ‘वट मूले तोपवासा’ ऐसा कहा गया है। पुराणों में यह स्पष्ट किया गया है कि वट में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है। वट वृक्ष अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है। संभव है वनगमन में ज्येष्ठ मास की तपती धूप से रक्षा के लिए भी वट के नीचे पूजा की जाती रही हो और बाद में यह धार्मिक परंपरा के रूपमें विकसित हो गई हो। परंतु गीता अध्याय 6 के श्लोक 16 में व्रत करने कि मनाहि है। दार्शनिक दृष्टि से देखें तो वट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व-बोध के प्रतीक के नाते भी स्वीकार किया जाता है। वट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का भी प्रतीक है। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसलिए वट वृक्ष को पति की दीर्घायु के लिए पूजना इस व्रत का अंग बना। महिलाएँ व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं।
पूजा की विधि :- पुराण, व्रत व साहित्य में सावित्री की अविस्मरणीय साधना की गई है। सौभाय के लिए किया जाने वाले वट-सावित्री व्रत आदर्श नारीत्व के प्रतीक के नाते स्वीकार किया गया है।
पूजा की विधि :-
– पूजा स्थल पर पहले रंगोली बना लें, उसके बाद अपनी पूजा की सामग्री वहां रखें।
– अपने पूजा स्थल पर एक चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर लक्ष्मी नारायण और शिव-पार्वती की प्रतिमा या मूर्ति स्थापित करें।
– पूजा स्थल पर तुलसी का पौधा रखें।
– सबसे पहले गणेश जी और माता गौरी की पूजा करें। तत्पश्चात बरगद के वृक्ष की पूजा करें।
– पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें. भिगोया हुआ चना, वस्त्र और कुछ धन अपनी सास को देकर आशिर्वाद प्राप्त करें।
– सावित्री-सत्यवान की कथा का पाठ करें और अन्य लोगों को भी सुनाएं।
– निर्धन गरीब स्त्री को सुहाग की सामाग्री दान दें।