देहरादून, 30 सितंबर। मनबीर कौर चैरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्षा रमन प्रीत कौर ने बताया की आगामी 01 अक्टूबर से मनबीर कौर चैरिटेबल ट्रस्ट राजधानी देहरादून में सिख मार्शल आर्ट का आयोजन करने जा रहा हैं। यह प्रशिक्षण तीन माह तक चलेगा। प्रथम चरण मे इसे शहर के दो स्कूलों से आरम्भ किया जा रहा हैं।
मनबीर कौर चैरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्षा रमन प्रीत कौर ने बताया की अपने संकल्पों और सामाजिक वातावरण को देखते हुए संस्था बालिकाओं को आत्मरक्षा, सेल्फ डिफेन्स तथा प्रतिकूल परिस्थितियों में साहस के साथ मुसीबतों का सामना करने के लिए सनराइज पबलिक स्कूल व जीजीआईसी राजपुर में सिख मार्शल आर्ट ( गतका) के प्रशिक्षण की शुरूआत कर रहीं हैं। कार्यक्रम का संचालन सरदार हरप्रीत सिंह के द्वारा किया जाएगा। यही कार्यक्रम शहर के अन्य स्कूलों में भी चलाया जाएगा। साथ ही हर क्षेत्र से प्रशिक्षकों की एक टीम भी भविष्य के लिए तैयार की जायेगी। ये प्रशिक्षण अंतर्राष्ट्रीय स्तर के सिख मार्शल आर्ट ( गतका) प्रशिक्षकों द्वारा ही दिया जाएगा। उन्होंने बताया की गतका- सिख मार्शल आर्ट यह कला नंगे हाथों से लड़ने से लेकर तलवार, कृपाण, लाठी, कुल्हाड़ी, लकड़ी की छड़ियों और बहुत कुछ का उपयोग करने तक विकसित हुई है। लकड़ी के बांस की छड़ी से मूल बातें सीखने से शुरुआत होती है। बाद में कृपाण का उपयोग किया जाता है। वे व्यक्तिगत ज़रूरत के हिसाब से सभी आकार और साइज़ में आते हैं। गतका की उत्पत्ति छठे सिख गुरु हरगोबिंद से जुड़ी है। कहा जाता है कि उन्होंने मुगल काल में आत्मरक्षा के लिए कृपाण का इस्तेमाल किया था। गतका में, लकड़ी की छड़ी से शुरुआत की जाती है और फिर कृपाण का इस्तेमाल सीखा जाता है। गतका में, हथियारों के इस्तेमाल के लिए सख्त अनुशासन, एकाग्रता, और सही तकनीक की ज़रूरत होती है। गतका में, संतुलन और समन्वय अभ्यास किया जाता है। गतका में, अभ्यास के दौरान दशम ग्रंथ साहिब के मंत्रों का पाठ किया जाता है।
गतका एक सिक्खों की पारंपरिक युद्धक कला है। वर्तमान में भी सिक्खों के धार्मिक उत्सवों में इस कला का शस्त्र संचालन प्रदर्शन किया जाता है। पंजाब सरकार (भारत ) ने इस भारतीय मार्शल आर्ट ‘गतका’ को खेल की मान्यता प्रदान कर दी है। अंतर्राष्ट्रीय गतका फेडरेशन की स्थापना १९८२ में हुई थी और १९८७ में औपचारिक रूप से इसे स्थापित किया गया था, गतका अब एक खेल या तलवारबाजी प्रदर्शन कला के रूप में लोकप्रिय है और अक्सर सिख त्योहारों के दौरान दिखाया जाता है।