देहरादून 25 जुलाई। आज उत्तराखंड आंदोलनकारी परिषद ने श्री देव सुमन के जन्म दिवस पर वृक्ष पर गीठा बांधकर उन्हें याद किया। परिषद के प्रवक्ता चिंतन सकलानी ने कहा कि प्रायः यह देखा गया है कि लोग शहादत दिवस पर वृक्ष रोपण करते हैं, लेकिन उनकी वह देखभाल नहीं करते। परिषद ने यह निर्णय लिया की वर्षों की रक्षा हेतु वृक्ष बंधन किया जाएगा। परिषद के कार्यकर्ताओं ने संकल्प लिया कि अन्याय के खिलाफ वे सदैव आवाज उठाते रहेंगे। इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त करते हुये उत्तराखंड आंदोलनकारी परिषद के प्रवक्ता चिंतन सकलानी ने कहा कि टिहरी रियासत की पैरामौट्सी (सार्वभौम सत्ता) ब्रिटिश ताज में ही निहित थी, इसलिए किसी भी रियासत का अपराधी ब्रिटिश राज का भी अपराधी था। इसलिए श्रीदेव सुमन को गिरफ्तार कर 6 सितम्बर 1942 को देहरादून पुलिस के हवाले किया गया तो ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें आगरा जेल भेज दिया था। आगरा जेल से छूटने के बाद श्रीदेव सुमन 30 दिसम्बर, 1943 को टिहरी जेल में बन्द कर दिए गए और फिर कभी जीवित बाहर नहीं निकले। जेल में ही 21 फरवरी 1944 को स्पेशल मजिस्ट्रेट ने देशद्रोह की धारा 124 (अ) के तहत दो वर्ष के कठोर कारावास और 200 रुपये अर्थदण्ड की सजा सुनाई। सुमन महाराजा के विरुद्ध नहीं बल्कि उनके कारिंदों की ज्यादतियों के खिलाफ थे और राजा के अधीन ही उत्तरदायी शासन चाहते थे। जेल में सुमन ने 3 मई 1944 को अपना ऐतिहासिक अनशन शुरू किया और 25 जुलाई 1944 को शाम 4 बजे उन्होंने प्राणोत्सर्ग कर दिया। टिहरी से मात्र 12 मील दूर सुमन के गांव जौलगांव में उनके परिजनों को मृत्यु का समाचार 30 जुलाई को पहुंचाया गया। उनकी पत्नी श्रीमती विनय लक्ष्मी उन दिनों महिला विद्यालय हरिद्वार में थी, जिन्हें कोई सूचना नहीं दी गई। लेकिन श्रीदेव सुमन का यह बलिदान न केवल टिहरी की राजशाही के अंत का कारण बना बल्कि देशभर के स्वाधीनता सेनानियों के लिए प्रेरणा का श्रोत भी बना।
इस अवसर पर प्रवक्ता चिंतन सकलानी, संरक्षक नवनीत सिंह गोसाई, प्रमिला रावत, उपाध्यक्ष प्रभात डंडियाल, सुभागा फरसवान, निशा मस्ताना, पुष्प लता, दुर्गा ध्यानी, रामपाल, बलेश बवानिया, अमित परमार, कल्पेश्वरी नेगी, मुकेश मोगा, जमुना देवी, लक्ष्मी देवी, माया देवी, कमलेश, इंदिरा देवी, संजय नौटियाल, यशोदा नौटियाल आदि उपस्थित थे।