- लेखिका डॉ अर्चना बहुगुणा द्वारा रचित लघु उपन्यास ‘मुखवा’ जल, जमीन और जंगल के खतरे, मनुष्य की भौतिकतावादी अदम्य लालसाओं व नारी मन के दोहन को उजागर करता है
देहरादून 17 अक्टूबर, आज रविवार को ईसी रोड स्थित एक कैफ़े में लेखिका डॉ अर्चना बहुगुणा द्वारा विरचित लघु उपन्यास ‘मुखवा’ जल, जमीन और जंगल के खतरे, मनुष्य की भौतिकतावादी अदम्य लालसाओं व नारी मन के दोहन को उजागर करता है। उपन्यास की प्रस्तावना डॉ सुधा रानी पांडेय जी (पूर्व सदस्य लोकसेवा आयोग, उत्तराखंड व पूर्व कुलपति गढ़वाल विश्वविद्यालय एवम उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय ) ने लिखी है। कार्यक्रम का संचालन कल्पना बहुगुणा ( प्रकाशक लोक गंगा , प्रभारी धाद साहित्य एकांश) ने किया। कार्यक्रम में प्रमुख वक्ताओं में पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, डॉ सुधा रानी पांडेय, डॉ कुसुम रावत, डॉली डबराल, डॉ विनय शंकर शुक्ला, सुधा जुगरान, डॉ नीलम प्रभा वर्मा, डॉ अतुल जोशी रहे। कार्यक्रम में निम्न उपस्थिति रही श्रीमती विनोद उनियाल, प्रभाकर उनियाल, डॉ गिरीश मैठाणी, सरल मैठाणी, डॉ भुवन चन्द्र पाठक, मधु पाठक,राजीव नयन बहुगुणा, सविता जोशी , आराध्य बहुगुणा, अविरल बहुगुणा । कार्यक्रम में सपना भी उपस्थित रही। सपना अपनी माँ के साथ अपनी जीविका के लिए काम करती है लेकिन उसका विवाह तय हो चुका है और वह आगे पढ़ाई नही कर पायेगी। लेकिन सपना अपना सपना तोड़ना नही चाहती। इस सपना देखने वाली लड़कियों के विषय में भी कार्यक्रम में विचार-विमर्श किया गया। लेखिका डॉ अर्चना बहुगुणा एक वरिष्ठ वैज्ञानिक के पद पर भारतीय प्राणि सर्वेक्षण विभाग में कार्यरत हैं।