देहरादून, उत्तराखंड में अब चुनाव का दिन करीब आ गया है इसके साथ चुनाव में सभी पार्टियों ने अपना पुरी ताकत झोंक रखी है। आज प्रदेश में बीजेपी, कांग्रेस सहित आप के उम्मीदवार चुनावी सभाओं से वोटरों को लुभाने की कोई कमी और कसर नहीं छोड़ रहे हैं। उत्तराखंड का चुनावी मिजाज इस बार कुछ अलग दिख रहा है। आम आदमी पार्टी ने भी पूरी ताकत लगा रखी है। ऐसे में इस बार का चुनाव काफी दिलचस्प होने जा रहा है। हालांकि क़रीब डेढ़ साल पहले जैसी उम्मीद आम आदमी पार्टी ने जगाई थी, मतदान की तारीख़ नज़दीक आते-आते वह कम होती जा रही है।
उत्तराखंड में तीसरे विकल्प बनने का सपना देख रही आप पार्टी से उत्तराखंड मूल के रसूखदार लोग जिस तरह से पार्टी छोड़ दूसरे दलों में जा रहे हैं इससे लग रहा है कि आज कल आम आदमी पार्टी में कुछ ठीक नहीं चल रहा है अभी देखने और सुनने से लग रहा है कि दिल्ली में करिश्मा करने वाली आम आदमी पार्टी के अरमानों पर उत्तराखंड के हालिया चुनाव में झाड़ू फिरता नजर आ रहा है। क्योंकि कुछ महीने पहले तक कई लोगों को पार्टी ज्वाइन करने वाली पार्टी में चुनाव के करीब आते ही भगदड़ मची हुई है।
ज्ञात हो कि कि देहरादून जिले की विधानसभा सीटों पर प्रत्याशी चयन में पर्वतीय मूल के दावेदारों की उपेक्षा से भी पार्टी कार्यकर्ताओं में गंभीर मतभेद बने हुए हैं। अभी दो दिन पहले ही कालाढूंगी। नैनीताल सहित पूरे प्रदेश में आम आदमी पार्टी के कार्यकताओ का लगातार इस्तीफा देना आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों की मुश्किलें बढ़ा रहा है। अब इस्तीफे नैनीताल और ऋषिकेश से आए हैं। ऋषिकेश में मनोज भट्ट ने आप पार्टी छोड़ी, नैनीताल जिले की कालाढूंगी विधानसभा में आप पार्टी के जिला आर्बज्वर सार्थक बिंद्रा व युवा जिला प्रवक्ता अधिवक्ता भानू कबडवाल ने संयुक्त रूप से प्रेस वार्ता कर अपने पद से इस्तीफा देते हुए पार्टी प्रदेश प्रभारी दिनेश मोहनिया पर गम्भीर आरोप लगाए।
बीते कुछ समय पहले पहले केजरीवाल की आम आदमी पार्टी छोड़ने वालों में कुछ बड़े नाम पूर्व आईपीएस अनन्त राम चौहान, पूर्व आईएएस सुवर्धन शाह हैं तथा कुछ दिन पहले आप पार्टी को छोड़ मेजर जनरल सी के जखमोला काँग्रेस में शामिल हो गए। राज्य आंदोलनकारी, डीएवी कालेज के पूर्व अध्यक्ष व भाजपा सरकार में दायित्वधारी रहे रविन्द्र जुगरान भी कुछ महीने आप में बिता कर वापस भाजपा में लौट आये। इन सभी ने आप पार्टी छोड़ते हुए आरोप लगाया कि दिल्ली के इशारे पर सभी नीतियां लागू की जा रही है, उत्तराखंड के नेताओं से किसी भी प्रकार का विचार विमर्श नहीं किया जा रहा है। दूसरी ओर पार्टी के अपने आप को मुख्यमंत्री मान कर चल रहे सीएम पद के उम्मीदवार कर्नल अजय कोठियाल भी अकेले चलते हुए बाकी लोगों को काबू नहीं कर पा रहे हैं। इससे लगता है कि उनके हाथ में भी कुछ नहीं है क़रीब डेढ़ साल पहले जैसी उम्मीद आम आदमी पार्टी के तेवर से दिखाई दिए थे और एक चर्चित मंत्री समेत कुछ विधायकों बारे में अफवाह फैलाई थी और कहा था कि प्रदेश के कई विधायक और बड़े चेहरे आप पार्टी को ज्वाइन करने को लालायित हैं और कभी भी पार्टी का दामन थाम सकते हैं। संभवताः पार्टी के द्वारा मुख्यमंत्री के नाम की घोषणा होते ही सीएम बनने के सपने पाले विधायकों और मंत्री का मोह भंग हो गया और उन्होंने इस पार्टी की ओर रुख नहीं किया यही कारण रहा कि दूसरे दलों से भी किसी बड़े नेता ने आप पार्टी की ओर रुख नहीं किया।
उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव में पहली बार शिरकत कर रही आम आदमी पार्टी से इस तरह टूट टूट कर दूसरे दलों में जा रहे नेताओं से पार्टी काफी असहज स्थिति में देखी जा रही है। उत्तराखंड में पाँचवीं विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव शुरू में यह मुक़ाबला त्रिकोणीय नज़र आ रहा था परन्तु अब फिर से दो पार्टियों में सिमटता नजर आ रहा है।
आम आदमी पार्टी छोड़ने वाले नेताओं में कुछ और प्रमुख नामों में संजय भट्ट, प्रदेश प्रवक्ता, राकेश काला, प्रवेश प्रवक्ता, आशुतोष नेगी, प्रदेश प्रवक्ता, अवतार राणा, प्रदेश प्रवक्ता जितेंद मलिक, प्रदेश सचिव, अतुल जोशी, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य, संजय पोखरियाल, प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य संजय सिलसुवाल, संस्थापक सदस्य, रिंकू सिंह राठौर, जिलाध्यक्ष, परवादून गुरमेल सिंह राठोर, जिलाध्यक्ष पछवादून, संजय क्षेत्री, जिला महासचिव देहरादून, दीपक सेलवान, प्रदेश उपाध्यक्ष, SC प्रकोष्ठ, गोरव उनियाल, जिला मीडिया प्रभारी देहरादून, संदीप गोयल, व्यपार मण्डल महासचिव राजू सिंह, महासचिव धर्मपुर, संदीप नेगी, संगठन मंत्री बद्रीनाथ, नवीन बिष्ट, कैट और सुनीता राणा, उधमसिंह नगर समेत कई नाम शामिल हैं। अब ये ही पदाधिकारी और कार्यकर्त्ता जनता से आप पार्टी को वोट न देने की अपील कर रहे है और पार्टी को उत्तराखंड विरोधी बता रहे हैं।
उत्तराखंड के चुनावी मौसम में प्रदेश के लगभग 30 से अधिक पदाधिकारी एवं सैकड़ों कार्यकर्ताओं समेत इस तरह बड़े कद के लोगों का केजरीवाल की पार्टी से चंद महीने में ही मोह भंग हो जाना आप के राष्ट्रीय व प्रदेश स्तरीय नेताओं की कार्यप्रणाली पर अब सवालिया निशान लगा रहा है। चुनावी विश्लेषकों को लगता है कि आम आदमी पार्टी कुछ सर्वे के अनुसार एक या दो सीट पर ही सिमट जाएगी।
अब देखना यह है कि उत्तराखंड को पांच साल के कार्यकाल में तीन-तीन मुख्यमंत्री देने वाली भाजपा क्या दोबारा सत्ता में आएगी? या फिर पूर्व सीएम हरीश रावत की बदौलत कांग्रेस वापसी करते हुए एक बार फिर उत्तराखंड में सरकार बनाएगी। इन सभी राजनैतिक सवालों के जवाब आखिरकार 10 मार्च को मतगणना के बाद मिल ही जाएगा।