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Thursday, September 11, 2025
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कोरोना मरीजों के बिल प्रतिपूर्ति पर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर

देहरादून 8 अक्टूबर, पिछले दिनों पूरे भारत मे कोरोना महामारी ने अपने पैर पसार रखे थे जिससे कोई भी अछूता नहीं रहा है। भले ही कोरोना का कहर अब कम हो गया हो किन्तु पूरे देश में इसने अपने चरम पर दोनों-लहरों में त्राहिमाम मचाया और लाखों लोगों जा जीवन बर्बाद कर दिया।  अबतक भारत मे 3.38 करोड़ लोगों को कोरोनो हुआ जोकि पूरे विश्व मे चिंताजनक पहले स्थान पर है। कोरोना से लोगो को जान-माल हानि के साथ-साथ आर्थिक मार भी झेलनी पड़ी है ।  भारत के मध्यम- वर्ग और निचले वर्ग के 90 % प्रतिशत आबादी के कई लोगों की नौकरियां-व्यापार पर खतरा मंडराया,  तब भी उन्होंने अपने परिवार वालो को बचाने के लिये प्राइवेट हस्पतालों में अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया । कोरोनकाल में केंद्र सरकार द्वारा जून 2020 में ” प्राइवेट हस्पतालों के कोरोना मरीजों हेतु चार्ज सुनिश्चित किया गया था ” , किन्तु फिर भी कई राज्यो के मरीजों से लाखों रुपये के बिल वसूले गये, अतः इन सबके दृष्टिगत देश में कोरोना मरीजों को प्राइवेट हस्पतालों द्वारा ” अत्यधिक ख़र्च की प्रतिपूर्ति – आमजन को प्राइवेट हस्पतालों से पैसे वापसी” के लिये देहरादून, उत्तराखंड निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली में जनहित याचिका लगाई।

याचिकाकर्ता अभिनव थापर ने माननीय सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में मुख्य बिंदु यह बताया कि पूरे देश में प्राइवेट हस्पतालों के लिये जून 2020 में गाइडलाइंस जारी कर ” प्राइवेट हस्पतालों के कोरोना मरीजों हेतु चार्ज सुनिश्चित किया गया था “, जिसके आधार पर समय-समय पर केंद्र और लगभग सभी राज्यों द्वारा “कोरोना मरीजों के एक-समान दरों की गाइडलाइंस ” जारी की गई थी किन्तु फिर भी देश भर लोगों ने ” अत्यधिक बिल की समस्या” को उठाया किन्तु लोगो को विशेष राहत नही मिली। कोरोना शुरू होने से अबतक लगभग 1 करोड़ लोगों को कोरोनो के कारण मजबूरी में प्राइवेट हस्पतालों का रुख लेना पड़ा और अधिकतर लोगों को ” गाइडलाइंस से अधिक बिल” की मार झेलनी पड़ी।                                                                                                                             

उल्लेखनीय है कि ” गाइडलाइंस में कोरोना मरीजों हेतू प्राइवेट हस्पतालों में यह चार्ज प्रतिदिन का निर्धारित था – ऑक्सिजन बेड- 8-10 हजार रुपये, आई०सी०यू०- 13-15 हजार रुपये व वेंटिलेटर बेड- 18 हजार रुपये , जिसमे PPE किट, दवाइयां, बेड, जाँच इत्यादि सब ख़र्चे युक्त थे ” किन्तु फिर भी कई राज्यो के मरीजों से लाखों रुपये के बिल वसूले गये, अतः इन सबके दृष्टिगत देश में कोरोना मरीजों को प्राइवेट हस्पतालों द्वारा ” अत्यधिक ख़र्च की प्रतिपूर्ति – आमजन को प्राइवेट हस्पतालों से पैसे वापसी” के लिये माननीय उच्चतम न्यायालय में जनहित याचिका दायर करी जिससे भारत के लगभग 1 करोड़ कोरोनो-पीड़ित परिवारों को न्याय मिल सके। माननीय सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश श्री डी वाई चंद्रचूड़ व न्यायाधीश  बी वी नागरथना वाली संयुक्त पीठ श्री ने जनहित याचिका की सुनवाई करी।

उल्लेखनीय है कि देहरादून, उत्तराखंड निवासी अभिनव थापर ने अपने साथियों के साथ मिलकर उत्तराखंड में कई व्हाट्सएप ग्रुप के माध्यम से प्रदेश में कोरोना की दूसरी लहर में प्रदेश भर के मरीजों को ऑक्सिजन, हस्पताल में ऑक्सिजन बेड, आई०सी०यू०, वेंटिलेटर, दवाई व सबसे महत्वपूर्ण ” प्लाज्मा व्यवस्था” द्वारा कई प्रकार से मदद पहुँचाने के कार्यों में सहयोग दिया ।

जनहित याचिका के अधिवक्ता दीपक कुमार शर्मा व कृष्ण बल्लभ ठाकुर ने बताया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट की संयुक्त पीठ ने इस याचिका के ” प्राइवेट हॉस्पिटल के अत्याधिक बिल चार्ज करने की अनियमिताओं , मरीजों को रिफंड जारी करने व पूरे देश के लिये सुनिश्चित गाइडलाइंस जारी करने विषय मे स्वास्थ्य मंत्रालय, केंद्र सरकार सरकार को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में अपना पक्ष रखने का आदेश दिया।”

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