देहरादून 6 अक्टूबर, “घर को आग लग गई घर के ही चिराग से” बेटे हरमीत को पाने के लिए जय सिंह ने अपनी दूसरी पत्नी से 10 साल तक अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ी। तब जाकर वह 12 साल की उम्र में हरमीत को अपने घर लेकर आ पाए थे। तब उन्होंने इस बात की कल्पना भी नहीं की होगी कि घर का यह ‘चिराग’ ही उनके घर-परिवार की खुशियों को आग लगा देगा।
देहरादून के चकराता रोड स्थित आदर्श विहार में 24 अक्टूबर 2014 दीपावली की रात को पिता समेत परिवार के पांच सदस्यों का बेरहमी से कत्ल करने वाले हरमीत सिंह को अपर सत्र न्यायाधीश आशुतोष कुमार मिश्र की अदालत ने फांसी की सजा सुनाई है। कोर्ट ने अलग-अलग धाराओं में एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। अदालत में यह मामला लगभग सात साल चला। इस मुकदमे में पुलिस की ओर से 61 दस्तावेजी सुबूत पेश किए गए। इनमें चारों की पोस्टमार्टम रिपोर्ट, एफएसएल रिपोर्ट, खून की डीएनए रिपोर्ट, एफआईआर व अन्य जांच दस्तावेज शामिल किए गए। 31 वस्तुएं सुबूत के तौर पर न्यायालय में पेश की गईं। इनमें हत्या में प्रयुक्त चाकू, खून से सने हरमीत के कपड़े, मृतकों के शरीर पर मौजूद कपड़े आदि थे।
मामले में सोमवार को अदालत ने हरमीत को दोषी करार दिया था। फिर मंगलवार को दोपहर 12 बजे सजा पर सुनवाई शुरू हुई। तकरीबन एक घंटा चली सुनवाई में अभियोजन पक्ष की ओर से 2008 में बिहार, 1980 व 1983 में पंजाब में सामने आए ऐसे ही मामलों में सुप्रीम कोर्ट की ओर से सुनाई गई फांसी की सजा की दलील पेश की गईं। अदालत ने अभियोजन पक्ष की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। इसके बाद शाम को करीब चार बजे का कार्यवाही दोबारा शुरू हुई और अदालत ने हरमीत को सजा सुनाई।
24 अक्टूबर 2014 की रात हरमीत ने हरमीत ने पिता जय सिंह, सौतेली मां कुलवंत कौर, गर्भवती बहन हरजीत कौर और तीन साल की भांजी सुखमणि की बड़ी बेरहमी से हत्या की थी। चारों सदस्यों पर हरमीत ने कुल 85 बार चाकू से वार किया था। उसने सबसे अधिक 27 वार सौतेली मां पर किए। पिता पर 24, गर्भवती बहन पर 24 और भांजी पर 10 वार किए। उसने हरजीत के पेट में चाकू से कई वार किए, जिससे उसके गर्भ में पल रहे बच्चे की भी मौत हो गई। अदालत ने गर्भस्थ शिशु की मौत को भी हत्या करार दिया है। सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता राजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि अदालत ने इस मामले को रेयरेस्ट आफ द रेयर मानते हुए फांसी की सजा सुनाई है।