- माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है वसंत पंचमी पर्व
- विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती की होगी वसंत पंचमी पर्व पर पूजा
देहरादून, डॉ आचार्य सुशांत राज के अनुसार 16 फरवरी को बसंत पंचमी पर्व मनाया जायेगा। बसंत के मौसम की शुरुआत बसंत पंचमी के त्यौहार के साथ होती है। इस मौके पर ज्ञान की देवी कही जाने वाली माता सरस्वती की पूजा होती है। बसंत पंचमी का पर्व विद्यालयों और हिन्दू परिवारों में सरस्वती मां के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। प्रत्येक वर्ष सभी लोग इस पर्व को बड़े धूमधाम के साथ मनाते हैं। यह पर्व माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। और पंचांग के अनुसार यह बहुत ही शुभ दिन होता है। इस दौरान विशेष पूजा पंडालों का भी आयोजन किया जाता है। और वहां पर मां सरस्वती की पूजा की जाती है। क्योंकि मां सरस्वती को विद्या और ज्ञान की देवी माना जाता है। यह पर्व अब समस्त विश्व में हिन्दू त्यौहार के रूप में मनाया जाने लगा है। इसके साथ ही यह पर्व भारत में भी बहुत लोकप्रिय हो गया है।
बसंत पंचमी के साथ भारत में वसंत का मौसम शुरू होता है और सरसों के फूल खिलते हैं। इस त्यौहार के साथ पीला जुड़ा हुआ है, और सरसों के खेतों में खिले फूल भी इसे एक खास पहचान देते हैं। बसंत पंचमी के मौके पर मां सरस्वती की पूजा होती है और उन्हें भी पीला वस्त्र चढ़ाया जाता है। बसंत पंचमी को हिंदू महीने माघ के उज्ज्वल पखवाड़े (शुक्ल पक्ष) के पांचवें दिन (पंचमी तिथि) को मनाया जाता है। इस दिन से, वसंत ऋतु (वसंत का मौसम) भारत में शुरू होती है। इस दिन सरस्वती पूजा भी की जाती है। उत्सव तब होता है जब पंचमी तिथि दिन के पहले पहर यानी सूर्योदय और मध्याह्न के बीच दिन का समय होता है। यदि पंचमी तिथि मध्याह्न के बाद शुरू होती है और अगले दिन की पहली छमाही में प्रबल होती है तो वसंत पंचमी दूसरे दिन मनाई जाती है। उत्सव केवल अगले दिन एक स्थिति में स्थानांतरित किया जा सकता है अर्थात् यदि पंचमी तिथि किसी भी समय पहले दिन की पहली छमाही में प्रचलित नहीं होती है। अन्यथा, अन्य सभी मामलों में, उत्सव पहले दिन होगा। इसीलिए, कभी-कभी, बसंत पंचमी भी पंचांग के अनुसार चतुर्थी तिथि पर आती है।
डॉ आचार्य सुशांत राज के अनुसार सूर्योदय कालीन पंचमी का संयोग सरस्वती पूजन, वाग्दान, विद्यारंभ, यज्ञोपवीत आदि संस्कारों व अन्य शुभ कार्यों के लिए श्रेष्ठ दिन वसंत पंचमी है। वसंत पंचमी अबूझ मुहूर्त वाले पर्वों की श्रेणी में शामिल है। देवी पूजन की सभी तिथियां व पूजन आदि के मुहूर्त की तिथियां हमेशा सूर्योदय कालीन ग्रहण करने का ही विधान है। प्रात:कालीन की गई पूजा सदैव ही सिद्ध व शुद्ध होती है। होलिका दहन से पहले होली बनाने की प्रक्रिया चालीस दिन पहले ही वसंत पंचमी के दिन शुरू हो जाती है। इस दिन गूलर वृक्ष की टहनी को गांव या मोहल्ले में या जिस जगह पर होली का दहन किया जाना होता है या किसी खुली जगह पर गाड़ दिया जाता है। इसे होली का ठुंडा गाड़ना भी कहते हैं। बसंत-पंचमी के दिन से ही होली की शुरुआत व निश्चित दहन स्थान में होली का ठुंडा गाढ़ने की भी परम्परा रही है। वसंत पंचमी का नाम सुनते ही हर कोई उत्साह और उमंग से भर जाता है। पतंगों के बिना यह पर्व अधूरा लगता है।
बसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाई जाती है। आज ही के दिन से भारत में वसंत ऋतु का आरम्भ होता है। इस दिन सरस्वती पूजा भी की जाती है। बसंत पंचमी की पूजा सूर्योदय के बाद और दिन के मध्य भाग से पहले की जाती है। इस समय को पूर्वाह्न भी कहा जाता है। यदि पंचमी तिथि दिन के मध्य के बाद शुरू हो रही है तो ऐसी स्थिति में वसंत पंचमी की पूजा अगले दिन की जाएगी। हालाँकि यह पूजा अगले दिन उसी स्थिति में होगी जब तिथि का प्रारंभ पहले दिन के मध्य से पहले नहीं हो रहा हो; यानि कि पंचमी तिथि पूर्वाह्नव्यापिनी न हो। बाक़ी सभी परिस्थितियों में पूजा पहले दिन ही होगी। इसी वजह से कभी-कभी पंचांग के अनुसार बसन्त पंचमी चतुर्थी तिथि को भी पड़ जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार आज के दिन देवी रति और भगवान कामदेव की षोडशोपचार पूजा करने का भी विधान है।
सरस्वती पूजा : आज के दिन ऊपर दिए गए मुहूर्त के अनुसार साहित्य, शिक्षा, कला इत्यादि के क्षेत्र से जुड़े लोग विद्या की देवी सरस्वती की पूजा-आराधना करते हैं। देवी सरस्वती की पूजा के साथ यदि सरस्वती स्त्रोत भी पढ़ा जाए तो अद्भुत परिणाम प्राप्त होते हैं और देवी प्रसन्न होती हैं।
श्री पंचमी : आज के दिन धन की देवी ‘लक्ष्मी’ (जिन्हें श्री भी कहा गया है) और भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है। कुछ लोग देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती की पूजा एक साथ ही करते हैं। सामान्यतः क़ारोबारी या व्यवसायी वर्ग के लोग देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। लक्ष्मी जी की पूजा के साथ श्री सू्क्त का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना गया है।
पंचमी तिथि उसी दिन मानी जाएगी जब वह पूर्वाह्नव्यापिनी होगी; यानि कि सूर्योदय और दिन के मध्य भाग के बीच में प्रारंभ होगी।
बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। भक्त उनके मंदिरों में जाते हैं और सरस्वती वंदना करते हैं और संगीत बजाते हैं। देवी सरस्वती रचनात्मक ऊर्जा प्रकट करती हैं और ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस दिन उनकी पूजा करते हैं उन्हें ज्ञान और रचनात्मकता का आशीर्वाद मिलता है।
यह भी माना जाता है कि पीला सरस्वती मां का पसंदीदा रंग है, इसलिए लोग इस दिन पीले कपड़े पहनते हैं और पीले व्यंजन और मिठाइयां तैयार करते हैं। वसंत पंचमी पर देश के कई हिस्सों में केसर के साथ पके हुए पीले चावल पारंपरिक दावत होती है। वसंत पंचमी के दिन, हिंदू लोग मां सरस्वती चालीसा पढ़ते हैं ताकि उनका भविष्य अच्छा हो सके। कई क्षेत्रों में, सरस्वती मंदिरों को एक रात पहले भोज से भर दिया जाता है ताकि देवी अगली सुबह अपने भक्तों के साथ उत्सव और जश्म में शामिल हो सकें। जैसा कि यह ज्ञान की देवी को समर्पित दिन है, कुछ माता-पिता अपने बच्चों के साथ बैठते हैं, उन्हें अध्ययन करने या अपना पहला शब्द लिखने और सीखने को प्रोत्साहित करने के लिए एक बिंदु बनाते हैं। इस महत्वपूर्ण अनुष्ठान को अक्षराभ्यासम या विद्यारम्भम कहा जाता है। कई शिक्षण संस्थानों में, देवी सरस्वती की प्रतिमा को पीले रंग में सजाया जाता है और फिर सरस्वती पूजा की जाती है, जहाँ शिक्षकों और छात्रों द्वारा सरस्वती स्तोत्रम् का पाठ किया जाता है। कई स्कूलों में इस दिन बसंत पंचमी पर गीत और कविताएँ गाई और सुनाई जाती हैं।
16 फरवरी बसंत पंचमी 2021 का मुहूर्त
पूजा मुहूर्त :06:59:11 से 12:35:28 तक
अवधि :5 घंटे 36 मिनट