- रैणी गाँव कि पहचान, चिपको आंदोलन को जिस मार्ग से शुरू किया गया था वह मार्ग भूस्खलन से पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया
- रैणी गाँव के लगभग 25 मकानों में भी गहरी दरारे आ चुकी है, जिसमे रहने वाले लगभग 30 परिवार प्रभावित हुए है
- नंदादेवी नेशनल पार्क के अंदर स्तिथ रैणी गाँव कोर जोन और बफर जोन के अंदर आता हैं। जो की काफी संवेदनशील हिस्सा हैं।
चमोली/मानसी जोशी। उत्तराखंड के कई पहाड़ी क्षेत्रों में अब बरसात ने दस्तख दे दी है। जिसमे से एक क्षेत्र चमोली जिले का रैणी गाँव भी है। बीते एक हफ्ते में हुई बारिश में कारण रैणी गाँव खतरे में है। बरसात के कारण गाँव के अगल-बगल स्थित खाली स्थान पर एक फ़ीट चौड़ी और करीब आधा किलोमीटर लम्बी दरार आ चुकी है। जिसके कारण गाँव वालों को डर है कि अगर यही स्तिथि बनी रही तो भूस्खलन हो सकता है। गाँव के लगभग 25 मकानों में भी गहरी दरारेआ चुकी है। जिसमे रहने वाले लगभग 30 परिवार प्रभावित हुए है । उन्हें डर है कि यदि कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो उनके मकान जल्द ही किसी हादसे का शिकार बन सकते हैं।
इतना ही नहीं, बरसात के कारण रैणी गाँव को हाईवे से जोड़ने वाला एक रास्ता भी क्षतिग्रस्त हो गया। हलाकि अभी गाँव वालों के पास आवा जाही के लिए दूसरा रास्ता हैं। पर सबसे ज्यादा दुखद बात यह रही कि रैणी गाँव कि पहचान, चिपको आंदोलन को जिस मार्ग से शुरू किया गया था वो मार्ग पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया। गाँव वालों का कहना हैं कि, गौरा देवी ने इसी मार्ग से चिपको आंदोलन को शुरू किया था। जिसके बाद उस मार्ग का नाम “चिपको आंदोलन पथ” रख दिया गया था।
आज से करीब चार महीने पहले, 7 फरवरी 2021 को उत्तराखंड के चमोली जिले में एक हिमखंड टूटने के कारण आई बाढ़ ने भारी तबाही मचाई। यह बाढ़ इतनी भयावह थी की इसने एक आपदा का रूप ले लिया था। ऋषि गंगा नदी में आई इस बाढ़ के कारण सैकड़ो लोग प्रभावित हुए थे। आपदा के कारण ऋषि गंगा नदी पर बना, ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह से नष्ट हो गया था, जो आज तक बंद है। सरकारी आकड़ों की मानें तो इस जलप्रलय में 205 लोग लापता हो गए थे, जिसमे से 77 लोगों के शव बरामद कर लिए गए। पर 128 लोग अभी भी लापता हैं।
इस पूरी घटना में सबसे ज्यादा चौकाने वाली बात ये थी कि, सर्दी के महीने कि चटख धूप के बीच में इस आपदा ने जन्म लिया था। इससे पहले भी उत्तराखंड में कई बार बाढ़ आई है, लेकिन बरसात या फिर गर्मी के महीनों में। यह पहली बार था कि कोई हिमखंड सर्दी के महीने में टूटकर नदी से जा मिला और आपदा का रूप ले लिया। इस आपदा ने हज़ारों लोगों को झकझोर कर रख दिया था। ऋषि गंगा नदी का बहाव इतना तेज़ था कि नदी कि ऊपर स्थित रैणी गाँव के निचले हिस्से में मिट्टी का कटाव् होने लगा था। पर ये बात यही खत्म नहीं होती। ऋषि गंगा नदी के ऊपरी भाग पर स्थित रैणी गाँव के लोगों के सर पर एक खतरा मंडराने लगा था। गाँव वालों को डर था कि आपदा के बाद, बरसात के महीने में उन्हें भूस्खलन जैसे भयानक घटना का सामना करना पड़ सकता है। आज आपदा के चार महीने बाद रैणी गाँव के लोगों के अंदर का डर सच होता दिखाई दे रहा है। इससे गाँव के करीब 55 से 60 परिवार खौफ में हैं।
रैणी गाँव के ही एक निवासी सोहन सिंह ने हमें बताया कि, 2 जून 2021 को उन्होंने इसी खतरे कि शिकायत मुख्यमंत्री हेल्पलाइन नंबर 1905 पर करी। लेकिन उन्हें वहां से यह जवाब मिला, कि पहले आप प्रसाशन को अपनी शिकायत दर्ज करवाए उसके बाद हमसे संपर्क करें। जिसके बाद उन्होंने चमोली जिले के उपजिलाधिकारी को एक पत्र लिखकर शिकायत करी। जिसमे उन्होंने रैणी गाँव में भूस्खलन के खतरे का जिक्र किया। अभी कोरोना वायरस के चलते उनके गाँव में गाड़ियों की आवा जाही भी बंद हैं। जिसके कारण उन्होंने यह शिकायत मेल द्वारा की हैं। पर उन्हें प्रसाशन से किसी भी प्रकार कि मदद की कोई उम्मीद नहीं हैं।
सोहन सिंह का कहना हैं कि इस सन्दर्भ में उन्होंने पहले भी तहसील स्तर में कई बार शिकायत की थी। लेकिन अभी तक कोई भी कदम नहीं उठाया गया हैं। वो यह भी कहते हैं की आपदा के बाद भूस्खलन के खतरे की शिकायत करने के बाद भी कोई सरकारी अधिकारी रैणी गाँव नहीं आया। यहाँ तक की मुख्यमंत्री स्तर तक भी शिकायत करी गयी थी पर उसका कोई परिणाम नहीं निकला।
बरसात के कारण पहाड़ी क्षेत्रों कि मिट्टी कमज़ोर होने लगती हैं जिसके कारण घरों के ढहने का खतरा बढ़ जाता हैं। एक हल्का सा भूस्खलन भी इन इलाकों में किसी कि जान लेने के लिए काफी हैं। नंदादेवी नेशनल पार्क के अंदर स्तिथ रैणी गाँव कोर जोन और बफर जोन के अंदर आता हैं। जो की काफी संवेदनशील हिस्सा हैं। जिसमे भूस्खलन जैसी घटनाये थोड़ी सी लापरवाही के कारण हो सकती हैं। यही खतरा अभी रैणी गाँव को भी है। चिपको आंदोलन जैसी आग को जन्म देने वाला ये गाँव आज प्रसाशन के सामने लाचार है। उम्मीद है की इस बार प्रसाशन इस बात को नज़रअंदाज़ नहीं करेगा।