देहरादून। आज दीपलोक कॉलोनी बल्लूपुर रोड देहरादून में श्री राम मन्दिर समिति व श्री श्री जगन्नाथ जी श्री गुण्डिचा रथ यात्रा आयोजन समिति द्वारा ’28वीं श्री श्री जगन्नाथ जी श्री गुण्डिचा रथ यात्रा’ का भव्य आयोजन किया गया। यह पावन यात्रा सामाजिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक एकता का अद्भुत स्वरूप है। इस पावन अवसर पर देहरादून नगर निगम के मेयर सौरभ थपलियाल ने महाप्रभु श्री जगन्नाथ जी से समस्त देहरादून नगरवासियों के सुख, समृद्धि की कामना की।
भारत के सबसे प्रमुख और खास त्योहारों में से एक मानी जाती है जगन्नाथ रथ यात्रा, जिसे रथ त्योहार और श्री गुंडीचा यात्रा के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर वर्ष आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा बड़ी ही धूमधाम से निकाली जाती है। स्कंद पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने एक दिन नगर देखने की इच्छा व्यक्त की। तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी बहन को रथ पर बिठाकर नगर दिखाने निकले। इस यात्रा के दौरान वे अपनी मौसी गुंडिचा के घर गए और वहां सात दिनों तक रुके। तभी से जगन्नाथ रथ यात्रा की परंपरा शुरू हुई। डॉक्टर आचार्य सुशांत राज ने जानकारी देते हुये बताया की भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन हर साल किया जाता है। जगन्नाथ रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ (श्रीकृष्ण), बलभद्र और सुभद्रा से जुड़ी होती है। धार्मिक मान्यता है कि जगन्नाथ रथ यात्रा में शामिल होने वाले भक्त की सभी समस्याएं भगवान जगन्नाथ दूर कर देते हैं। हर साल आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की द्धितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ की एक बड़ी रथयात्रा निकलती है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में श्रीकृष्ण, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को सजाया जाता है। फिर उनकी रथ यात्रा निकाली जाती है। भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के बाद भक्तों की सारी पीड़ाएं और समस्याएं दूर होती है। वे अपना जीवन अच्छे से जी सकते हैं और अंत में मोक्ष प्राप्त करते हैं। वहीं, कई भक्त अपनी मनोकामनाओं को पूरा कराने की इच्छा के साथ भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा में शामिल होते हैं। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा से जुड़ी एक और धार्मिक मान्यता यह है कि रथ यात्रा में दान करने से इसका अक्षय फल प्राप्त होता है। पद्म पुराण की कहानी के अनुसार एक बार आषाढ़ के महीने में सुभद्रा ने भगवान जगन्नाथ से शहर देखने की इच्छा जताई। तब जगन्नाथ भगवान ने अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाया। वे उन्हें नगर दिखाने के लिए निकल पड़े। भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और सुभद्रा जी अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए। इन तीनों ने अपनी मौसी के घर सात दिनों तक आराम किया। 8 दिनों तक विश्राम करने के बाद भगवान जगन्नाथ फिर से अपने निवास स्थान लौट आते हैं। विश्राम करके वापस अपने निवास स्थान लौटने के दौरान कई छोटे-छोटे पड़ाव आते हैं, जहां पर कई प्राचीन मंदिरों में भी भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।