देहरादून, 11 नवंबर अब उत्तराखंड के वनवासियों गिरिजनों के लिए व्यापक रचनात्मक संघर्ष चलाने का फैसला लिया है। विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक विचारधाराओं के लोग पर्वतीय गिरिजनों-वनवासियों के सामाजिक, आर्थिक, भूस्वामित्व और संसाधनों पर अधिकारों को लेकर विशिष्ट किस्म का आंदोलन चलाया जाएगा। इस मौके पर राज्य सरकार से वित्तीय स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग की गई।
बुधवार को उत्तरांचल प्रेस क्लब में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष व वनाधिकार कांग्रेस नेता किशोर उपाध्याय, समाजवादी पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष डा. एसएन सचान, माकपा के वरिष्ठ नेता बचीराम कौंसवाल, पूर्व दर्जाधारी राजेंद्र भंडारी अपने गढ़वाल-कुमाऊं के दौरे की बातें साझा की। चिपकों आंदोंलन के केंद्र में अपने अनुभवों की जानकारी दी। किशोर उपाध्याय ने कहा कि सरकारों की गलत नीतियों और नौकरशाही की संवेदनहीनता के कारण पहाड़ में निवास करने वाले गिरिजन और वनवासी अपने ही जल, जंगल और जमीन से वंचित हो गये हैं। वन कानूनों ने उन्हें वन संसाधन से दूर करने का काम किया है। इसलिए चिपको आंदोलन की प्रणेता गौरादेवी के गांव रैणी के लोग निराश, हताश और आक्रोशित हैं। ऐसा इसलिए है चूंकि पर्यावरण के नाम पर इन लोगों के साथ अन्याय हुआ है। इनके परंपरागत हक हकूक छीन लिए गए। इसलिए वक्त की मांग है कि तमाम वन कानूनों की समीक्षा की जाए। वन वन के आसपास रहने वाले गिरिजनों को पुश्तैनी अधिकार मिले। उनको उनके त्याग और बलिदा न के लिए क्षतिपूर्ति दी जानी चाहिए। उपाध्याय ने कहा कि जलावन की लकड़ी की क्षतिपूर्ति के लिए हर महीने नि:शुल्क गैस सिलेंडर दिया जाए। केंद्रीय सेवा में आरक्षण मिलना चाहिए। बिजली और पानी नि:शुल्क मिले। मकान आदि निर्माण के लिए राहत मिले। परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी मिलनी ही चाहिए। उत्पादक रोजगार के लिए स्थानीय संसाधनों पर अधिकार दिया जाना चाहिए।
सपा प्रदेशाध्यक्ष डा. सत्यनारायण सचान ने कहा कि केंद्र सरकार को चाहिए कि वह पहाड़वासियों को ग्रीन बोनस का पैकेज दे। हम समूचे देश को आक्सीजन व जल प्रदान कर रहे हैं। वनों को बचाने के लिए हमारे लोगों की आर्थिक गतिविधियों पर रोक है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह इसकी क्षतिपूर्ति करे। चंकबंदी को अमल में लाया जाए। पर्वतीय जन को जनजाति का दर्जा मिले। माकपा नेता बचीराम कौंसवाल बोले कि प्रदेश की अमूल्य भू संपदा पर कारपोरेट व बाहरी पूंजीपतियों का कब्जा हता जा रहा है। प्रदेश के वनवासी संसाधन विहीन हो रहे हैं। नौकरशाही उनकी उपेक्षा और उत्पीड़िन कर रही है। पूर्वदर्जाधारी राजेंद्र भंडारी ने कहा कि अब आरपार का संघर्ष होगा। सरकार कथित तौर पर बेकार पड़ी भूमि को अधिग्रहित करने की योजना बना रही है। इसको बरदाश्त नहीं करेंगे।