देहरादून, विधानसभा चुनाव 2022 में भाजपा की पहली सूची के बाद कांग्रेस ने उम्मीदवारों की जो सूची जारी की, उसमें साफ तौर पर हरीश रावत का दखल नज़र आया। उत्तराखंड कांग्रेस जैसे प्रमुख राजनीतिक दलों ने इस बार फिर आम कार्यकर्ताओं की जगह परिवारवाद को तरजीह दी है। उत्तराखंड चुनाव के लिए टिकटों के मामले में लंबे गतिरोध बीच एक बात साफ हो गई कांग्रेस में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की खूब चली, वह अपनी बेटी अनुपमा रावत समेत अपने तमाम समर्थकों को टिकट दिलाने में कामयाब रहे हालांकि हरीश रावत की रामनगर सीट को लेकर जिस तरह विरोध सामने आया और उसके बाद रावत की सीट बदल दी गई, उसे कहीं रावत के लिए एक झटका भी माना जा रहा था, लेकिन उन्होंने 5 साल से तैयारी करे बैठे रणजीत रावत को भी रामनगर से नहीं लड़ने दिया और उन्हें सल्ट की सीट पर भेज कर अपना वर्चस्व दिखा दिया। पार्टी के परिवार में एक टिकट को तलकर किये जा रहे दावे को धता बताते हुए वह अपनी बेटी अनुपमा रावत को टिकट दिलाने में कामयाब रहे। पार्टी के भीतर जिस सिद्धांत के दम पर अन्य नेताओं के परिजनों को टिकट दिए जाने में आनाकानी करती रही, वहीं अनुपमा को टिकट मिलना रावत की बड़ी जीत ही रही।
टिकट बंटवारे में हरीश रावत की खूब चली प्रदेश में उन्हें रोकने और टक्कर देने वाली वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इंदिरा हृयदेश के असमय निधन के साथ ही कांग्रेस का दूसरा खेमा जिसका वो प्रतिनिधित्व करती थी एक दम लाचार हो गया और महज कुछ सीटों पर सिमट गया। वहीँ हरिद्वार ग्रामीण सीट से अनुपमा रावत को उम्मीदवार बनाया जाना, साफ तौर पर हरीश रावत के दवाब के आगे कांग्रेस आलाकमान के झुकने का ही संकेत माना जा रहा है एक परिवार एक व्यक्ति’ को टिकट वाला फॉर्मूला पार्टी ने लागू तो किया लेकिन यह रावत के मामले में अमल में नहीं लाया गया। जिस तरह से यशपाल आर्य ने अपने विधायक बेटे के लिए टिकट की शर्त के साथ कांग्रेस ज्वाइन की थी उसी मुद्दे को लेकर वह हाईकमान तक अपना सन्देश भी देने में कामयाब रहे।
बताते चलें कि वर्षों से हरिद्वार सीट से तैयारी कर रहे हरीश रावत, हरिद्वार को परिवारिक सीट बनाने के इच्छुक रावत पिछली बार यहाँ से चुनाव हार गए थे, उसी हरिद्वार ग्रामीण सीट से बेटी अनुपमा को टिकट दिलवा कर अपनी ऊँची पहुँच भी साबित किया है। जहाँ कार्यकर्ताओं को एक टिकट पाने के एड़ियां रगड़नी पड़ रही हों वहीँ रावत अपनी बेटी समेत लगभग सभी चहेते समर्थकों को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे। रही बात हरक सिंह रावत की तो हरीश रावत ने हरक को कांग्रेस में शामिल होने के लिए नाक रगड़वा दी और अपनी ही शर्तों पर ही पार्टी में लिया और दूसरा टिकट भी नहीं लेने दिया। हालाँकि हरदा की किस्मत से हरक को बीजेपी ने पहले ही पार्टी से निकाल कर एक तगड़ा झटका दे दिया था जिसके कारण हरक अपनी कांग्रेस में कोई शर्त नहीं मनवा सके। अब इसके मायने ये निकले जा सकते है कि रावत अपनी बेटी समेत लगभग सभी चहेते समर्थकों को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे हैं तो अगर पार्टी बहुमत का आंकड़ा छूती है तो अधिकतर विधायक हरीश रावत के ही समर्थन में रहेंगे और हरदा का मुख्यमंत्री बनना तय और कोई नहीं रोक पायेगा।